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( १७ ) इसीलिए पाठ्य पुस्तकों को निर्धारित करते समय ही इसका ध्यान रखना चाहिए। ___(8) ऐतिहासिक तथा भौगोलिक ज्ञान देने में विद्यार्थियों के निकट की वस्तुओं से उसका प्रारम्भ करना चाहिए । अक्सर देखा जाता है कि ऊँची कक्षाओं के छात्र यूरोप और अमेरिका के, चीन और जापान के, रशिया और फ्रान्स के पहाड़ को जानेंगे, पुलों की लम्बाई और चौड़ाई भी बता देंगे, नदी-नालों के नाम भी बतला देंगे, वहाँ के राजाओं की जन्म-मरण की तिथियाँ और राजस्वकाल को भी बतलायँगे, उनके लड़के लड़कियों के विवाह कहां हुए, यह वे शायद बतायेंगे किन्तु उनके देश में, उनके प्रांत में, उनके परगने में बल्कि उनके गाँव में कौनसी नदी बहती है, यह भी नहीं बता सकेंगे। हमारे यहाँ प्राचीन समय में कौन-कौन ऋषि, महर्षि, महात्मा हो गये, इसका इन्हें पता तक नहीं। इसलिये पाठ्यपुस्तकों का क्रम इस प्रकार रहना चाहिए कि जिससे अपने घर से लेकर समस्तविश्व तक का ज्ञान उन्हें हो सके।
(५) भारतीय-शास्त्रों में त्रियों की ६४ और पुरुषों की ७२ कलाओं का वर्णन आता है। कला विषयक पाठों किंवा पुस्तकों का निर्माण करने के समय उनको सामने रखकर के पाठ्य रचना इस प्रकार करनी चाहिए जिससे उन कलाओं का यथा योग्य ज्ञान हो सके और साथ-साथ वे यह भी जान सकें कि इनमें कौन सी कलाएँ हेय, झेय तथा उपादेय हैं ?
(6) पाठ्य-रचना में बुनियादी शिक्षण का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए। मौण्टिसरी पद्धति से बाल-शिक्षण का जो प्रचार हो रहा है, वह हमारे शिशुओं के चरित्र-निर्माण के लिए बहुत ही उपयोगी है किन्तु मध्यम और निर्धन स्थिति की जनता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com