________________
(
१८ )
के लिए यह शिक्षण मार्थिक दृष्टि से असह्य होने की शिकायत प्रायः लोगों में सुनी जाती है। इसलिए इसे सरल और अल्पब्बयी बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसके साथ ही साथ, मेरी नम्र सम्मति से, इसो बुनियादी शिक्षण के साथ में भाषा शुद्धि का प्रयोग भी सम्मिलित किया जाय, तो वह अधिकाधिक लाभप्रद हो सकता है। अर्थात् कम से कम तीन वर्ष से अधिक उम्र के शिशुओं को अक्षर ज्ञान न होते हुए भी, मात्र मौखिक इशारे से व्यावहारिक बातचीत में संस्कृतहिन्दी आदि सिखाना चाहिए। अभी हमारे विद्यालय के अन्तर्गत चार से आठ वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए 'नूतन बाल शिक्षण शाला' नामक एक विभाग खोलकर कार्य प्रारम्भ किया गया है। इन छोटे बच्चों को भारतीय प्राचीन 'श्रौत' अथवा 'दर्शन' पद्धति से हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में व्यावहारिक बोल-चाल की भाषा सिखाई जाती है । बालक बड़े विनोद के साथ में नेत्र और कर्णेन्द्रिय द्वारा, हम जो सिखाते हैं, उसे शुद्ध उच्चारण के साथ, सीख लेते हैं। न तो प्रत्येक को अलगअलग पाठ देने की आवश्यकता रहती है और न रटने की ही। मेरा विश्वास है कि थोड़े समय में ये बच्चे शुद्ध-उच्चारण के साथ अपने घर में अथवा हर किसी व्यक्ति के साथ हिन्दी के अतिरिक्त संस्कृत और अंग्रेजी में भी बात-चीत कर सकेंगे। __इसलिए मेरा अनुरोध है कि हमारे बाल-मन्दिरों, शिशुमन्दिरों में इस प्रकार भाषा-ज्ञान के लिए इस पद्धति से शिक्षण अवश्य दिया जाना चाहिए।
मुझे आशा है कि पाठ्य-ग्रन्थों किंवा पाठ्यक्रम के लिए, जो मैंने ऊपर सूचना लिखी है, उन पर शिक्षा प्रेमी और शिक्षाधिकारी महानुभाव अवश्य ध्यान देंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com