Book Title: Rushibhashit Sutra
Author(s): Vinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
का उल्लेख है उनमें एक अंगिरस भारद्वाज भी हैं। इसके अतिरिक्त सत्तनिपात81 में कृषि भारद्वाज, सुन्दरिक भारद्वाज के उल्लेख हैं, किन्तु भारद्वाज एक गोत्र है। गोत्र की समानता होने पर नाम की भिन्नता के कारण ये दोनों व्यक्ति अंगिरस भारद्वाज से भिन्न माने जाने चाहिए। सुत्तनिपात के बासे? सुत्त में भी वशिष्ठ और भारद्वाज के बीच इस प्रश्न को लेकर चर्चा उठती है कि व्यक्ति अपने शील और सदाचार के आधार पर ब्राह्मण होता है या जन्म के आधार पर? जब हम सुत्तनिपात के इस बासे? सुत्त में हुई चर्चा की और ऋषिभाषित के अंगिरस भारद्वाज के उपदेशों की तुलना करते हैं, तो एक सबसे महत्त्वपूर्ण बात परिलक्षित होती है, वह यह कि दोनों ही व्यक्ति की आन्तरिक पवित्रता को ही महत्त्वपूर्ण मानते प्रतीत होते हैं, जन्म या बाह्य आचरण को नहीं। इस प्रकार धर्म और साधना के क्षेत्र में अन्तर मनोभावों को प्रमुखता देने की बात दोनों में ही प्रमुख रूप से पायी जाती है।
अंगिरस के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण हमें थेरगाथा की अटकथा82 में मिलता है। सर्वप्रथम चूलपंथक थेरगाथा में अंगिरस को आदित्य के समान तपस्वी बताया गया है। वेणिथेर गाथा में उन्हें महामुनि कहा गया है तथा उनकी तुलना चन्द्रमा से की गयी है। बौद्ध परम्परा में ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह मिली कि उसमें अंगिरस की इस चर्चा के प्रसंग में चम्पानगर का उल्लेख आया है। जैन परम्परा में इसिमण्डल वृत्ति एवं आवश्यकचूर्णि में इन्हें चम्पानगर के कौशिक उपाध्याय का शिष्य कहा गया है। सम्पूर्ण पालिसाहित्य में लगभग 7 अंगिरसों का उल्लेख प्राप्त होता है। इन सात अंगिरसों में ऋषिभाषित के उल्लेखित अंगिरस कौन हैं? यह विचारणीय है। सुत्तनिपात में जिन 10 ऋषियों के साथ अंगिरस का उल्लेख हुआ है सम्भवतः वे ही ऋषिभाषित के अंगिरस हैं। मेरी दृष्टि में छान्दोग्य उपनिषद् के अंगिरस और सुत्तनिपात के अंगिरस तथा जैन परम्परा के ऋषिभाषित, आवश्यकनियुक्ति
और आवश्यकचूर्णि के अंगिरस एक ही व्यक्ति हैं; जिनके कथानक को तीनों परम्पराओं ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है। पं. कैलाशचन्द्रजी ने जैन साहित्य के इतिहास की पूर्व पीठिका में छान्दोग्य उपनिषद् के देवकी पुत्र कृष्ण के उपदेशक अंगिरस को अरिष्टनेमि मानने का प्रयास किया है, किन्तु मेरी दृष्टि में यह एक क्लिष्ट कल्पना ही है। इतना निश्चित सत्य है कि अंगिरस, कृष्ण
और अरिष्टनेमि के समकालीन तथा बुद्ध, महावीर और पार्श्व के पूर्ववर्ती श्रमण परम्परा के औपनिषदिक काल के ऋषि हैं। ___ वैदिक परम्परा में अंगिरस का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद83 में प्राप्त होता है। उसके पश्चात् छान्दोग्य उपनिषद् में घोर अंगिरस के नाम से इनका उल्लेख 48 इसिभासियाई सुत्ताई