Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार]
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में निरंतर प्रवर्तनेवाले, पांच इंद्रियों के विषयों के त्यागी, छह काय के जीवों की विराधना के त्यागी; एक बार मौन से पर का दिया रस-नीरस आपके निमित्त नहीं बनाया गया भोजन, रत्नत्रय का सहायक. काय की रक्षा के निमित्त ग्रहण करनेवाले ऐसे नग्न मनिराज का भेष. एक वस्त्र के धारक ऐलक व कौपीन के धारक क्षुल्लक का भेष, तथा एक वस्त्र की धारी अर्जिका का भेष इन तीन के सिवाय जो अन्य अनेक भेष धारण करते हैं वे सभी कुलिंगी हैं।
एक मुनि का भेष तथा लंगोटी धारी ऐलक-कौपीन धारी क्षुल्लक तथा एक वस्त्र की धारण करनेवाली अर्जिका - इन तीन भेषों के सिवाय समस्त भेषधारियों को सम्यग्दृष्टि विनय नमस्कार नहीं करता है। ऐसे कुदेव, कुशास्त्र और कुलिंगधारियों को भय, आशा, स्नेह, लोभ से सम्यग्दृष्टि नमस्कार नहीं करता, विनय नहीं करता है।
भावार्थ :- सम्यग्दृष्टि कुदेवों को भय से नमस्कार नहीं करता है। ये देव है, राजादि हजारों मनुष्य इसे पूजते हैं, यदि मैं इसे नमस्कार नहीं करूँगा तो यह देव क्रोध करके मेरा बिगाड़ कर देगा, सम्पत्ति हरण कर लेगा, स्त्री-पुत्रादि का नाश कर देगा, इसी के द्वेष के कारण मुझे रोग हुआ है, दुखी कर रखा है, द्वेष करके अब मेरा और नुकसान करेगा, रोगी बना देगा। इस क्षेत्र में सभी लोग इसे पूजते हैं, हमारे कुल में बड़े पिता, पिता के पिता, माता, भाई बन्धु पूजते आये हैं; अब यदि मैं इसकी पूजा-वंदना छोड़ दूंगा तो मेरा घरवार तो अनेक पुत्र-पौत्रादि लक्ष्मी से भरा है कहीं किसी का मरण, धन हानि, रोगादि हो जायेगा तो मुझ पर आरोप आवेगा और मुझ पर बड़ा भारी दुःख आ पड़ेगा जो बड़ा अनर्थ होगा।
सारा जगत भी ऐसा कहता है- पहले इस देवता को नहीं माननेवालों को इस देवता ने अंधा कर दिया था, इसकी पूजा करनेवालों के, वोलारी बोलनेवालों के, सत्कार करनेवाले अनेक लोगों के रोग इस देवता ने दूर कर दिये थे। ये जगन्नाथ स्वामी हैं, इनकी नगरी में (पुरी में) नाई, धोबी, मीना, खटीक, चमार परस्पर शामिल-इकट्ठे होकर जूठा भोजन करते हैं; जो इसकी अवज्ञा करता है उसे कोढ़ निकाल देते हैं -ऐसा भय दिखाते हैं।
इसने अपने पूजनेवाले अंधों को आंखें दी हैं, सम्पत्ति दी है। जो इसकी निन्दा करता था उसकी संपत्ति नष्ट हो गई है। पहले इस, शनीचर देव ने क्रोध करके राजा विक्रमादित्य को चोर बना दिया था। इसी प्रकार अनेक भेषधारी देव, देवी, भैरव, क्षेत्रपाल, हनुमान, दुर्गा, गनेश, चंडी, सूर्य, ग्रह, योगिनी, यक्ष इत्यादि का भय देखकर सम्यग्दृष्टि इन्हे नमस्कार विनय आदि नहीं करता है।
ये देवता कुछ संपत्ति , पुत्र, आजीविका, धन, राज्य आदि दे देगा ऐसी आशा करके भी वंदना नहीं करता है।
हमसे इस देवता का स्नेह है, हम पर यदि दुख आ जाय तो हमारा रक्षक तो यही देवता है- ऐसे स्नेह से भी वंदना नहीं करता है; लोभ से भी सत्कार-वंदना नहीं करता है। मैंने तो जिस दिन से इस देवता की आराधना प्रारंभ की है उसी दिन से लाभ हो रहा है, उच्चता है - ऐसा लाभ का कारण मानकर कुदेवों की आराधना नहीं करता है।
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