Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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वैसे ही ये भी कुलरुप वृक्ष की छाया में ठहरकर कर्म के अनुकूल अनेक गतियों में चले जाते हैं। जिनसे अपनी प्रीति मानते हो उनमें से एक भी हमारे हित का नहीं है, सब अपनेअपने मतलब ( स्वार्थ ) के हैं, आँखों के सुख के समान ( देखने मात्र का सुख ) क्षणभर में प्रीति का राग नष्ट हो जाता है। जैसे पक्षी एक वृक्ष पर बिना कोई पूर्व संकेत किये ही रात्रि में आकर बस जाते हैं, प्रातः काल होने पर उड़कर चले जाते हैं, वैसे ही कुटुम्ब के लोग बिना किसी संकेत के ही कर्म के वश होकर एकत्र होते हैं और फिर बिखर जाते हैं।
ये समस्त धन, संपदा, आज्ञा ऐश्वर्य, राज्य, इन्द्रियों के विषयों की साम्रगी देखतेदेखते अवश्य वियोग को प्राप्त हो जायेगी । यौवन तो दोपहर की छाया के समान ढल जायेगा, स्थिर नहीं रहेगा। चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्रादि तो अस्त होकर फिर उदय हो जाते हैं, हिम - वसन्तादि ऋतुएं भी जा-जाकर फिर-फिर आ जाती हैं, परन्तु नष्ट इन्द्रिय, यौवन, आयु, कायादि फिर वापिस लौटकर नहीं आते हैं। जैसे पर्वत से गिरती नदी की तरंग बिना रुके ही चली जाती है, वैसे ही आयु भी क्षण-क्षण में बिना रुके ही चली जाती है।
जिस देह के आधीन जीवन है उस देह को जरजर करती हुई जरा समय-समय चली आ रही है। कैसी ही जरा ? यौवनरुप वृक्ष को जलाने के लिये दावाग्नि के समान है, सौभाग्यरुप फूलों को ओलों की वर्षा के समान है, स्त्रियों की प्रीतिरुप हिरणी को व्याघ्र के समान है, ज्ञाननेत्र को मूंदने को धूल की वर्षा के समान है, तपरुप कमल के वन को हिमानी (बर्फीली हवा) के समान है, दीनता उत्पन्न करने की माता है, तिरस्कार बढ़ाने को धाय के समान है, उत्साह घटाने को तिरस्कार है, रुप धन को चुरानेवाली है, बल को नष्ट करनेवाली है, जंघावल को बिगाड़नेवाली है, आलस को बढ़ानेवाली है, स्मरण शक्ति को नष्ट करनेवाली यह जरा - वृद्धावस्था ही है। मौत से मिलानेवाली दूती के समान जरा के आने पर भी अपने आत्महित को विस्मरण करके निडर हो, यह बड़ा अनर्थ है। बारम्बार मनुष्य जन्मादि सामग्री नहीं मिलेगी।
जितना नेत्रादि इंद्रियों का तेज है वह क्षण - प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। सभी संयोगों को वियोगरुप जानो। इन इन्द्रियों के विषयों में राग करके कौन-कौन नष्ट नहीं हो गये हैं? ये सभी विषय भी विला जांयेगें तथा इन्द्रियाँ भी नष्ट हो जायेंगी । किसके लिये आत्महित छोड़कर घोर पापरूप दुर्ध्यान कर रहे हो ? जिन विषयों में राग करके अधिक अधिक लीन रहे हो, वे सभी विषय तुम्हारे हृदय में तीव्र दाह उत्पन्न कराकर विनश जायेंगे। शरीर को निरंतर रोगों से व्याप्त जानो, सभी जीवों को मरण से व्याप्त जानो, ऐश्वर्य को विनाश के सन्मुख जाने। ये जितने भी संयोग हैं उनका नियम से वियोग होगा ।
ये सभी विषय आत्मा के स्वरुप को भुलानेवाले हैं। इनमें लीन होकर तीन लोक नष्ट हो गया है। विषयों के सेवन से सुख चाहना तो ऐसा है जैसे जीवन के लिये जहर पीना, शीतलता पाने
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