Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
३८४]
जाते हैं। वन में ही, गुफाओं में से सिंह-व्याघ्रादि निकलकर अंग फाड़ डालते हैं। वहीं पर वज्रमयी चोंचों वाले गृद्ध , काक आदि पक्षी उन नारकियों के अंगों को फाड़ते हैं, नेत्रादि निकाल लेते हैं ,पेट फाड़कर आंते निकाल लेते हैं। यद्यपि नरक में तिर्यंच नहीं हैं तथापि नारकी विक्रिया द्वारा अपना तिर्यंचरूप बना लेते हैं। नारकियों में पृथक्-जुदा शरीर बनाने की विक्रिया नहीं है। एक शरीर ही सिंह, व्याघ्र , श्वान, घूघू, काक आदि देह धारण कर लेता है।
नारकी शुभ करना चाहे तो भी शुभ नहीं होता है। अपने को तथा अन्य को दुःखदायी ही परिणाम , देह, वेदना, विक्रिया करने में समर्थ हैं, सुख करनेवाली विक्रिया नहीं होती, परिणाम नहीं होते, देह नहीं होती, वेदना नहीं होती। जीवों के ऐसा क्षेत्रजनित पाप कर्म का उदय है।
नरक में नारकियों को मारने के लिये अनेक आयुध, शूली, घानी, यन्त्र, लोहे के ओंटाने के, तलने के, रांधने के अनेक दुःखदायी पात्र क्षेत्र के स्वभाव से ही हैं। वहाँ पर सुखदायी साम्रगी तो स्वप्न में भी नहीं मिलती है। वहाँ लोहमय पुतली ज्वाला को उगलती हुई, जिसका शरीर महावेदना संताप करनेवाला है, वे उछलकर नारकियों को पकड़ती हैं, स्पर्श करती हैं। उनके स्पर्श से करोड़ों बिच्छुओं के काटने के समान, वजाग्नि के समान , तथा विषमय तीक्ष्ण शस्त्रों के आधात से भी अनन्तगुनी वेदना होती है। नरको में जो दुःखदायी सामग्री है उसका स्वभाव आदि दिखलाने के लिये अनुभव कराने के लिये समस्त मध्यलोक में कोई वस्तु दिखाई नहीं देती है, तथापि उनकी अधिक दुःखदायकता दिखलाने के लिये कितनी ही वस्तुओं का वर्णन किया है।
नारकियों का दु:ख तो साक्षात् भगवान का केवलज्ञान जानता है तथा जो नारकी होकर भोगता है वही जीव जानता है। नारकियों का शरीर, रुधिर, मांस, हाड़, चाम आदि सप्त धातुमय नहीं है, परन्तु उनके शरीर के पुद्गल ऊँट, श्वान, मार्जार, आदि के सड़े हुए कलेवर से भी स असंख्यातगुने दुर्गन्ध युक्त हैं और असंख्यातगुने दुर्निरीक्ष्य घृणा करानेवाले हैं, जिनका स्वरुप ना देखा जा सकता है, ना सुना जा सकता है, ना गन्ध ग्रहण की जा सकती है। मनुष्यादि तो उन्हें देखते ही, दुर्गन्ध के ग्रहण करते की प्राण रहित हो जाते हैं।
नरक गति में कौन उत्पन्न होते हैं ? पूर्व जन्म में खोटे परिणामों से जो नरक की आयु बाँधकर नरक में उत्पन्न होते हैं वे वहाँ पर असंख्यातकाल तक दुःख भोगते हैं। बहत आरंभ करनेवाले, बहुत परिग्रह में आसक्त , घोर हिंसक परिणामी नरक की आयु बांधते हैं। __विश्वासघाती, धर्मद्रोही, गुरुद्रोही, स्वामीद्रोही, कृध्नी, परधन-परस्त्री के लोलुपी, अन्यायमार्गी, धर्मात्मा-त्यागियों को कलंक लगानेवाले, यतियों का घात करनेवाले, ग्रामों में घास तृणादि वृक्षों में आग लगानेवाले, देवद्रव्य चुरानेवाले , तीव्र कषायी, अनन्तानुबंधी कषाय के धारक, कृष्ण लेश्या के धारक, सुंदर आहारादि मिलने पर भी जिह्वा इंद्रिय की लोलुपता से मांस के भक्षक, मद्यपायी, वेश्यानुरागी, परविध्न संतोषी, लम्पटी, तीव्रलोभी, दुराचार के धारी, मिथ्यात्व , अन्याय व अभक्ष्य की प्रशंसा करनेवालों का नरक में गमन होता है। विषादि मिलावट का कार्य करनेवाले , विषादि उत्पन्न करनेवाले ,
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