Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 507
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४६४] के अत्यंत क्षयोपशम से प्राप्त हुए दिव्य आहार को बहुत समय तक भोग करके भी क्षुधा वेदना दूर नहीं हुई तो तुम्हारे द्वारा कुछ थोड़ा सा अन्नादि खा लेने से कैसे तृप्ति होगी ? अतः धैर्य धारण करके आहार की इच्छा जीतने का प्रयत्न करो। आहार कितना भक्षण करोगे, व इसका स्वाद कितनी देर तक है ? जिहा के स्पर्श मात्र तक स्वाद है, निगलने के बाद स्वाद नहीं, पहले स्वाद नहीं, केवल अधिक तृष्णा बढ़ाता है ? समस्त प्रकार के आहार का भक्षण तुमने अनादि से किया है, तब भी तृप्ति नहीं हुई, तो अब अन्त समय में जब कण्ठ में प्राण आ गये हैं, तब थोड़े से आहार से कैसे तृप्ति होगी ? अतः दृढ़ता धारण करके अपनाआत्मा का हित करो। ____ लोक में ऐसा कोई भी अपूर्व आहार नहीं है जिसे तुमने नहीं भोगा हो। जब समस्त समुद्र का जल पीकर भी तृप्त नहीं हुए तो ओस की बूंद को चांटकर कैसे तृप्त होवोगे ? पूर्व समय में भी रात्रि दिन आहार के लिये ही दुःखी होकर जीवन व्यतीत किया है। देखो-बहुत समय तक तो आहार के स्वाद लेने की इच्छा रहती है वह दुःख; फिर आहार की विधि मिलाने को सेवा, व्यापार आदि करके धन कमाने में दुःख दीनता करते हुये पराधीन रहने में भी दुःख; धन खर्च करने में दुःख; स्त्री-पुत्र आदि जो आहार की विधि मिलाते हैं, उनके आधीन होने का दुःख । बहुत समय तक आप भोजन बनाने का आरंभ करते हो, किन्तु जब तक भोजन तैयार नहीं हो जाता तब तक उसकी इच्छा करते रहते हो वह दुःख; कोई रस आदि सामग्री नहीं लाता है तो उसे लाने को जाने का दुःख; अपनी इच्छा के अनुसार नहीं मिले तो दुःख; मीठा भोजन खाते समय खट्टे की इच्छा, फिर चरपरे की इच्छा, फिर मीठे की इच्छा, इत्यादि बार-बार अनेक इच्छायें जहाँ तक नहीं मिटी वहाँ सुख कहाँ है ? दुःख ही है। जिह्वा का स्पर्श हुआ और निगल लेता है। श्रेष्ठ मनोवांछित आहार भी एक क्षण में जिह्वा के मूल के नीच उतर जाता है। भोजन का स्वाद तो जिह्वा का अग्रभाग ही जानता हैं। जब तक जिह्वा ने स्पर्श नहीं किया तब तक स्वाद नहीं आता है; जब जिह्वा के नीच उतर गया तो स्वाद नहीं। एक क्षण मात्र को आहार के स्पर्श का स्वाद है जिसको पाने के लिये घोर दुर्ध्यान करता है, महासंकट भोगता है, किन्तु भोजन करके भी इच्छा रहित नहीं होता है। इसलिये ऐसे दु:ख देनेवाले आहार के त्याग का समय आया है, इस समय को महादुर्लभ। अक्षय निधान के लाभ के समान जानो। आहार के स्वाद से अति विरक्त होओ। यदि यहाँ दृढ़ परिणामों से आहार से विरक्त होओगे तो स्वर्गलोग में जाकर उत्पन्न हो जाओगे जहाँ हजारों वर्ष तक क्षुधा वेदना उत्पन्न नहीं होगी। वहाँ जितने सागर की आयु है उतने हजार वर्ष तक तो भोजन की इच्छा ही उत्पन्न नहीं होती है। बाद में जब कुछ इच्छा उत्पन्न होती है तब कंठ में से अमृत के परमाणु ऐसे बह जाते हैं, जिनसे एक क्षण मात्र में इच्छा का अभाव हो जाता है। यह समस्त प्रभाव असंख्यात वर्ष तक क्षुधा वेदना नहीं होने का, पूर्व जन्म में आहार की लालसा छोड़कर अनशन, अवमौदर्य, रस परित्याग तप करने का है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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