Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
४६२]
विधि कर्म मिला दे वैसे निर्दोष उज्ज्वल भोजन से उदर भरता है। रसना इंद्रिय की लंपटता को कभी प्राप्त नहीं होता है।
मनुष्य जन्म की सफलता तो आहार की लंपटता को जीतने से ही है। तिर्यंचगति में तो आहार की लंपटता से बलवान होकर के वे निर्बल का तथा परस्पर में भक्षण कर लेते हैं, आहार की गृद्धता से माता ( सर्प) पुत्र का भी भक्षण कर लेती है।
मनुष्य गति में भी नीच उच्च-जाति का भेद, समस्त आचार का भेद भोजन के निमित्त से ही है। इस लोक में जितना निंद्य आचरण है वह सब भोजन का विचार रहित के ही होता है। भोजन में जिनकी लंपटता नहीं है वे उज्ज्वल हैं (शुद्ध), वे वांछा रहित हैं, वे उत्तम है; नीच-उच्च जाति-कुल का भेद भी भोजन के निमित्त से ही है।
आहार का लम्पटी घोर आरंभ करता है। बाग-बगीचों में एक अपने भोजन जीमने के स्वाद के लिये करोड़ों त्रस जीवों को मारता है, महापाप की अनुमोदना करता है, अभक्ष्य भक्षण करता है। असत्य वचन, हिंसादि महापाप के वचन आहार का लंपटी बोलता है। मिष्ट, सुन्दर भोजन के लिये क्रोध करता है, मान करता है, छल-कपट करता है, चोरी करता है, कुल की मर्यादा तोड़ता है, कुशील सेवन करता है, धन परिग्रह में मूर्छावान हो जाता है, अन्य लोगों को मार देता है, झूठ बोलता है, चोरी करके भी मिष्ठ भोजन के लिये धन संग्रह करता है।
भोजन का लंपटी निर्लज्ज हो जाता है: नीच जातिवालों के साथ शामिल होकर खा लेता है, नीच कुल के मद्य-मांस खानेवालों की सेवा-नौकरी भी करने लगता है, अपने पद के योग्य उच्चता जाति-कुल का आचार नहीं देखता है, स्वादिष्ट भोजन देखकर मन बिगाड़ लेता है। बहुत धन का धनी तथा अपने धन पर सुन्दर भोजन नित्य मिलता होने पर भी नीचों के, दरिद्रियों, शूद्रों के, म्लेच्छ-मुसलमानों के घर पर जाकर भी भोजन कर लेता है।
भोजन का लोलुपी ग्राम-नगर में बिकनेवाला, नीचे आचरण करनेवालों के द्वारा बनाया गया, तथा सभी मुसलमान आदि जिसे छूते जाते हैं, बेचते हैं ऐसे अधम भोजन को भी खरीद लाता है और खा लेता है। ____ भोजन का लम्पटी तपश्चरण, ज्ञानभ्यास, श्रद्धान, आचरण, समस्त शील-संयम को दूर से ही छोड़ता है; अपना अपमान होना नहीं देखता है, अभक्ष्य में, गूंठी वस्तु में, मांसादिक में आसक्त हो जाता है। अयोग्य संगति, अयोग्य आचरण द्वारा अपने कुलक्रम को नष्ट कर देता है, मलिन कर देता है। जिला इन्द्रिय की लंपटता क्या-क्या अनर्थ नहीं कराती है ? शोधना, देखना तो आहार के लंपटी के है ही नहीं। ये आहार कैसा है, कहाँ से आया है ? ऐसा विचार तो आहार के लंपटी के रहता ही नहीं है। ____ आहार के लम्पटी की तीक्ष्णबुद्धि भी मन्द हो जाती है, बुद्धि विपरीत हो जाती है, सुमार्ग छोड़कर कुमार्ग में प्रवीण हो जाती है, धर्म से पराङ्मुख हो जाती है। वही देखते भी हैं – कितने
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