Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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देखो शास्त्राभ्यास की महिमा! जिसके होने पर परंपरा आत्मानुभव दशा को प्राप्त होता है, मोक्षमार्गरुप फल को प्राप्त होता है। यह तो दूर ही रहो,तत्काल ही इतने गुण प्रकट होते हैं, - १ क्रोधादि कषायों की तो मंदता होती है, २ पंचेन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्ति रुकती है, ३ अति चंचल मन भी एकाग्र होता है, ४ हिंसादि पाँच पाप नहीं होते, ५ स्तोक (अल्प) ज्ञान होने पर भी त्रिलोक के तीन काल संबंधी चराचर पदार्थों का जानना होता है, ६ हेय-उपादेय की पहिचान होती है, ७ आत्मज्ञान सन्मुख होता है, ८ अधिक-अधिक ज्ञान होने पर आनन्द उत्पन्न होता है ९। लोक में महिमा-यश विशेष होता है, १० अतिशय पुण्य का बंध होता है, इत्यादिक गुण शास्त्राभ्यास करने से तत्काल ही उत्पन्न होते हैं, इसलिये शास्त्राभ्यास अवश्य करना।
- वही पृ. १५ तुमने भाग्य से अवसर पाया है, इसलिये तुमको हठ से भी तुम्हारे हित के लिये प्रेरणा करते हैं। जैसे हो सके वैसे इस शास्त्र का अभ्यास करो। अन्य जीवों को जैसे बने वैसे शस्त्राभ्यास कराओ। जो जीव शास्त्राभ्यास करते हैं उनकी अनुमोदना करो। पुस्तक लिखवाना व पढ़ने-पढ़ाने वालों की स्थिरता करनी इत्यादि शास्त्राभ्यास के बाह्य कारण उनका साधन करना; क्योंकि उनके द्वारा भी परंपरा कार्य सिद्धि होती है व महत् पुण्य उत्पन्न होता है।
- वहीं पृ. १६ इस सम्यग्दर्शन भूमिका बिना हे जीव! व्रत रुपी वृक्ष नहीं होते।
- सावयधम्म : आचार्य योगीन्दुदेव
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