Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सप्तम- सम्यग्दर्शन अधिकार]
[४३९ भावार्थ :- अपने कर्त्तव्य का फल तो मृत्यु होने के बाद ही मिलता है। आपने जो छहकाय के जीवों को अभयदान दिया, तथा राग द्वेष काम क्रोध आदि का नाश करके, असत्य अन्याय कुशील परधन हरण का त्याग करके, परम सन्तोष धारण करके अपने आत्मा को अभयदान दिया उसका फल स्वर्गलोक के सिवा कहाँ भोगा जाता है ? वह स्वर्गलोक का सुख तो मृत्यु नाम के मित्र की कृपा से ही प्राप्त होता है। अतः मृत्यु के समान इस जीव का कोई अन्य उपकारक नहीं है।
__ यहाँ इस मनुष्य पर्याय में जीर्ण शरीर में कौन-कौन से दुःख भोगना पड़ते, कितने समय तक और रहना पड़ता ? आर्तध्यान-रौद्रध्यान करके तिर्यंच-नरकगति में जा पड़ते; इसलिये अब मरण का भय करके, तथा देह कुटुम्ब परिग्रह की ममता करके चिन्तामणिकल्पवृक्ष के समान समाधिमरण को बिगाड़ करके भय सहित व ममतावान होकर कुमरण करके दुर्गति में जाना उचित नहीं है। समाधिराजा बन्दीगृह से मुक्त कराता है :
आगर्भाद् दुःखसन्तप्तः प्रक्षिप्तो देह पिजरे ।
नात्मा विमुच्यतेऽन्येन मृत्युभूमिपतिं विना ।।५।। अर्थ :- इस कर्म नामके मेरे बैरी ने मेरे आत्मा को जिस क्षण से यह गर्भ में आया तभी से देहरुप पिंजरे में डाल रखा है व सदा से ही क्षुधा, तृषा, रोग, वियोग, आदि अनेक दुःखों से सन्तप्त होकर पड़ा हूँ। अब ऐसे अनेक दुःखों से व्याप्त इस देहरुप पिंजरे से मृत्यु नाम के राजा के बिना मुझे कौन छुड़ावेगा ?
__ भावार्थ :- मैं इस देहरुप पिंजरे में कर्मरुप शत्रु द्वारा पटका गया इन्द्रियों के आधीन हुआ अनेक कष्ट सह रहा हूँ। नित्य ही क्षुधा-तृषा की वेदना कष्ट देती है, निरन्तर श्वासउच्छवास द्वारा पवन को खेंचना और निकालना, अनेक प्रकार के रोगों का दुःख भोगना, पेट भरने के लिये अनेक प्रकार की पराधीनता; सेवा, कृषि, वाणिज्य आदि द्वारा महादुःखी होते रहना; शीत-उष्णता सहना; दुष्टों द्वारा ताड़न-मारन, कुवचन, अपमान, आदि सहना, कुटुम्ब के आधीन रहना; धनवान के, राजा के ,स्त्री-पुत्रादि के आधीन रहना ऐसे महान बंदीगृह समान देह में से मृत्यु नाम के बलवान राजा के बिना कौन निकाले ?
इस देह को कहाँ तक ढोता ? उसे नित्य उठाना, पानी पिलाना, स्नान कराना, निद्रा लिवाना, कामादि विषय साधन कराना, अनेक वस्त्र-आभूषणों से सजाना, रात्रि-दिन इस देह का ही दासपना करते हुए भी यह शरीर आत्मा को अनेक कष्ट देता है, भयभीत करता है, आत्मा का स्वरुप भुलाये रखता है । ऐसे कृतघ्न देह से बाहर निकलना मृत्यु नाम के राजा के बिना नहीं होता।
यदि ज्ञान सहित, देह से ममता छोड़कर, सावधानी पूर्वक , धर्मध्यान सहित, संक्लेश रहित , वीतरागता पूर्वक मैं समाधिमरण नामक राजा की सहायता ले लूँ तो फिर मेरा आत्मा देह धारण ही नहीं करेगा, दुःखों का पात्र नहीं होगा। समाधिमरण नाम का राजा बड़ा न्यायमार्गी है, मुझे इसी की शरण प्राप्त होवे। मेरा कुमरण नहीं हो।
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