Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
३८२]
योजन लम्बे चौड़े हैं कोई असंख्यात योजन लम्बे चौड़े हैं। उन सभी बिलों की छतों में नारकियों के उत्पत्ति स्थान हैं। वे छोटे मुंह के ऊँट के मुख के आकार आदि लिये औंधे मुख हैं । उनमें नारकी जीव उत्पन्न होते हैं जो नीचे की ओर सिर तथा ऊपर की ओर पैर किये हुये आकर वज्राग्निमय पृथ्वी पर गिरकर ऐसे उछलते हैं जैसे जोर से पटकने से गेंद झंपा खाकर उछलती है, फिर पृथ्वी पर गिरकर बार-बार उछलते फिरते हैं।
नरक की भूमि कैसी है? असंख्यात बिच्छुओं के काटने से होनेवाले दुःख से असंख्यात गुणा दुःख करनेवाली है। उन नरकों के बिलों में ऊपर की चार पृथ्वी में तथा पाँचवी पृथ्वी के दो लाख बिल, इस प्रकार वियासी लाख बिलों में तो केवल आतप की वेदना है। उस नरक की उष्णता को बतलाने के लिये यहाँ कोई भी पदार्थ देखने-जानने में नहीं आता है, जिससे सदृश्यता कही जाय? तो भी भगवान के कहे आगम में उष्णता का ऐसा अनुमान कराया गया है
एक लाख योजन मोटा लोहे का गोला यदि यहाँ से छोड़े तो नरक की भूमि को छूने के पहले ही नरक के क्षेत्र के वातावरण की उष्णता से वह गोला पिघलकर रसरुप होकर बह जाता है।
पाँचवी पृथ्वी के तिहाई व छठीं -सातवीं पृथ्वी के शीत बिलों में शीत की ऐसी तीव्र वेदना है कि यदि एक लाख योजन मोटा लोहे का गोला रख दें तो एक क्षण भर में शीत से खण्ड–खण्ड होकर बिखर जाता है। ऐसी उष्ण वेदना और शीत वेदना से भरे नरकों में कर्म के वश हुये जीव असंख्यात काल तक घोर दुःख भोगते हैं, आयु पूर्ण हुये बिना मरण को प्राप्त नहीं होते हैं। ऐसी तो नरक में घोर शीत-उष्णता की वेदना है ।
नरक में क्षुधा वेदना ऐसी है कि यदि जगत के पत्थर, मिट्टी आदि सभी खा ले तो भी क्षुधा वेदना नहीं मिटे, परन्तु खाने के लिये एक कण भी नहीं मिलता है । वहाँ पर तृषा वेदना ऐसी है कि यदि समस्त समुद्रों का जल पी ले तो भी तृषा की वेदना दूर नहीं हो, के लिये एक बूंद भी जल नहीं मिलता है।
परन्तु पीने
करोंड़ों रोगों की घोर वेदना जहाँ पर एक ही काल में उत्पन्न होती है। जहाँ पर नये नारकी को देखकर हजारों नारकी महाभंयकर रुप तथा अनेक शस्त्रों के साथ मार डालो, चीर दो, फाड़ दो, टुकड़े कर दो आदि भंयकर शब्द करते हुये चारों तरफ से मारने को आ जाते हैं।
नारकी कैसे हैं? नग्न रुप, अत्यंत रुखा भंयकर काला रुप, लाल पीले कुटिल नेत्रों से क्रूर देखते हुए, मुँह फाड़े, लपलपाती हुई विकराल जिहा सहित, जिनके दाँत करोंत के समान तीक्ष्ण हैं व टेढ़े हैं, ऊपर को उठे हुए लाल पीले पैने कड़े बालों वाले हैं, भयानक तीक्ष्ण नाखून हैं, महानिर्दयी, हुंडक संस्थान वाले, आ-आकर के कोई मुद्गर मुसण्डो से मस्तक चूर्ण कर देते है । नारकियों का शरीर, जैसे जल से भरे सरोवर में जल को मूसलों से कूटने पर जल उछलकर उसी सरोवर में गिरकर मिल जाता है, उसी प्रकार नारकियों का शरीर भी खण्ड-खण्डरुप होकर उछलकर वापिस उसी शरीर में आकर मिल जाता 1 आयु पूर्ण हुए बिना मरण नहीं होता है।
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