Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer

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Page 458
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार ] [४९५ मय पुष्पों के गुच्छों से वेष्टित है, स्वर्णमय ऊँची शाखायें हैं। वज्र अर्थात् हीरों से बनाया गया पेड़ है वह अपने प्रभामण्डल से समस्त दिशाओं को प्रकाशित कर रहा है। रणत्कार करते हुए घण्टों के नाद से भगवान की विजय की घोषणा तीनलोक में व्याप्त हो रही है। ध्वजाओं के उड़ते हुए वस्त्र के दर्शन करने से लोगों के अपराधों की पापरुप रज दूर हो रही है। मोतियों की जालियों सहित मस्तक के उपर घूमते हुए तीन छत्र जिनेन्द्र को तीनलोक का ईश्वरपना वचन बिना ही कह रहे हैं, उस अशोक चैत्यवृक्ष का मूल भाग चार दिशाओं में चार जिनेन्द्र की प्रतिमाओं से युक्त है। उन जिनेन्द्र के प्रतिबिम्बों का इंद्रादि देव अभिषेक करते हैं, तथा गंध, माला, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, अक्षत आदि से देव पूजन करते हैं। वे अरहन्त की प्रतिमायें क्षीर समुद्र के जल से प्रक्षालित हैं, स्वर्णमय हैं, नित्य सुरअसुर देव लोक के उत्तम द्रव्यों से इन्द्रादि देव पूजते हैं, वंदना - नमस्कार करते हैं। कितने ही देव अरहन्त के गुणों का स्मरणकर निश्चय पूर्वक आंनद से गान करते हैं। जैसे अशोक वन में एक अशोक नाम का चैत्यवृक्ष है वैसे ही सप्तच्छद, चंपक और, आम्र नाम के वनों में एक-एक चंपक आदि नाम वाला चैत्य वृक्ष जानना । चैत्य अर्थात् जिनेन्द्र की प्रतिमा सहित इन वृक्षों का मूल भाग है, इसीलिये इनका चैत्य वृक्ष नाम धारना सार्थक ही है। उन वनों के अंतिम भाग के चारों ओर वेदी है। जो कंगूरो सहित होता है, उसे कोट कहते हैं। जो कंगूरों रहित चारों ओर दीवला होती है, उसे वेदी कहते हैं। उन वन के अंत में स्वर्ण वेदी है। उसके बहुत ऊँचे चारों तरफ रुपामय चार द्वार हैं। वह वेदी तथा दरवाजे अनेक रत्नों से व्याप्त हैं । उन दरवाजों पर घण्टाओं के समूह लटक रहे हैं, मोतियों की मालायें, झालर, पुष्पमालायें, लंबी लटक रही हैं। वे दरवाजे एक सौ आठ अष्ट-मंगल द्रव्य तथा रत्नों के आभरण सहित रत्नमय तोरणों से शोभित हो रहे हैं। उन तीन खण्डों के द्वारों में अनेक देव गीत, वादित्र, नृत्य से जिनेन्द्र के यश में लीन हो रहे हैं। उन द्वारों के आगे वेदी के नजदीक ही रत्नमय पीठों के ऊपर स्वर्णमय स्तंभों के अग्रभाग में अनेक प्रकार की ध्वजाओं की पंक्तियाँ हैं । वे स्तम्भ मणिमय पीठों के ऊपर स्वर्णमय अनुपम कांति धारक है; अट्ठासी अंगुल मोटे हैं- स्थूल हैं, पच्चीस - पच्चीस धनुष के अन्तराल से खड़े हैं। इनकी ऊँचाई का प्रमाण इस प्रकार जानना :- समोशरण में स्थित सिद्धार्थ वृक्ष, चैत्यवृक्ष, कोट, वन, वेदी, स्तूप, तोरण, मानस्तंभ, ध्वजा, वन के वृक्ष, प्रासाद (महल), पर्वत आदि की ऊँचाई तीर्थकर की देह की ऊँचाई से बाहर गुनी जाननी । पर्वतों की ऊँचाई से उनकी चौड़ाई आठ गुनी है; स्तूपों की चौड़ाई ऊँचाई से कुछ अधिक है। कोट, वेदी आदि की चौड़ाई उनकी ऊँचाई से चौथाई भाग जाननी । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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