Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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उत्पाद पूर्व के एक करोड़ १,००,००,००० पदों में जीवादि द्रव्यों के ( अनेक प्रकार की नय विवक्षा से क्रमवर्ती – युगपत अनेक धर्मों से उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ) स्वभाव का (भूत वर्तमान भविष्य कालों की अपेक्षा से ८१-८१ भेद करके) वर्णन किया है ।।
अग्रायणी पूर्व के छियानवै लाख ९६,००,००० पदों में द्वादशांग का सारभूत ज्ञान सात तत्त्व, नौ पदार्थ, छ: द्रव्य, सातसौ नय, दुर्नय आदि (प्रयोजनभूत बातों) का वर्णन है ।२।
वीर्यानुवाद पूर्व के सत्तर लाख ७०,००,००० पदों में आत्मा का स्व, वीर्य, पर-वीर्य, दोनों का वीर्य, क्षेत्रवीर्य, कालवीर्य, भाववीर्य, तपोवीर्य, द्रव्य-गुण-पर्यायों का शक्ति रूप वीर्य का वर्णन है।।
अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व के साठ लाख ६०,००,००० पदों में जीवादि द्रव्यों का स्व-द्रव्य क्षेत्र-काल-भाव रूप चतुष्टय की अपेक्षा अस्ति तथा पर-द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव रूप चतुष्टय की अपेक्षा नास्ति इत्यादि सात भेद (सप्त भंग) तथा नित्य, अनित्य, एक, अनेक आदि का विरोध रहित वर्णन हैं।४।
ज्ञानप्रवाद पूर्व के एक कम एक करोड़ ९९,९९,९९९ पदों में मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्याय, केवल-ये पांच सम्यग्ज्ञान, तथा कुमति, कुश्रुत, विभंग-ये तीन अज्ञान इनका स्वरूप, संख्या, विषय, फल की अपेक्षा प्रमाण - अप्रमाण रूप भेद सहित वर्णन है।५। सत्यप्रवाद पूर्व के छ: अधिक एक करोड़ १,००,००,००६ पदों में वचन गुप्ति , वचन के
के कारण, वक्ता के भेद, बारह भाषा, दश प्रकार का सत्य, तथा बहुत प्रकार के असत्य वचनों का वर्णन है।६।।
आत्मप्रवाद पूर्व के छब्बीस करोड़ २६,००,००,००० पदों में आत्मा जीव है, कर्ता है, भोक्ता है, प्राणी हे, वक्ता है, पुदगल है, वेदक है, व्यापक (विष्णु) है, स्वयंभू है, शरीर सहित है, शक्तिवान है, जन्तु है, मानव है, मानी है, मायावी है, योगी है, संकोच-विस्तार वाला है, क्षेत्रज्ञ है, मूर्तिक है, इत्यादि स्वरूप का वर्णन है।७। ___कर्मप्रवाद पूर्व के एक करोड़ अस्सी लाख १,८०,००,००० पदों में कर्मों के बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता, उत्कर्षण, अपकर्षण, उपशमन, संक्रमण, निधत्ति, निकाचित आदि अवस्थारूप मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति आदि भेदों का तथा ईर्यापथ तपस्या, अधः कर्म आदि का वर्णन है।८।
प्रत्याख्यान पूर्व के चौरासी लाख ८४,००,००० पदों में नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा जीवों के संहनन, बल आदि के अनुसार काल की मर्यादा सहित त्याग, पाप सहित पदार्थों का त्याग, उपवास की विधि व भावना, पाँच समिति, तीन गुप्ति इत्यादि का वर्णन है।९।
विद्यानुवाद पूर्व के एक करोड़ दश लाख १,१०,००,००० पदों में अंगुष्ठ, प्रेत्ससेन आदि सात सौ अल्पविद्याओं का, तथा रोहिणी आदि पाँच सौ महाविद्याओ का स्वरूप, सामर्थ्य, साधनभूत मंत्र-यंत्र-पूजा-विधान, सिद्ध हो जाने पर उनका फल तथा अंतरिक्ष , भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन, छिन्न-ये आठ प्रकार का निमित्त ज्ञान का वर्णन है ।१०।
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