Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार
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प्रमाण, हेतु, नय का खण्डन करने में समर्थ ऐसे अनेकान्त को ग्रहण करने में समर्थ होकर , श्रोताओं का पदार्थों का स्वरुप ग्रहण कराने में होकर, श्रुत का व्याख्यान करता है। उनके
न के लिये तर्क. नय, प्रमाण को यक्त करने में तत्पर. इस प्रकार चिन्तवन करने में एकाग्रता, वह सर्वज्ञ की आज्ञा को बतलाने के प्रयोजन से आज्ञा विचय धर्मध्यान हैं।
जिन सिद्धान्त में प्रसिद्ध सर्वज्ञ की आज्ञा के अनुसार वस्तु स्वरुप का चिन्तवन करना वह आज्ञा विचय है। जगत में जो भी वस्तु है वह अनन्त गुण-अनन्त पर्याय स्वरुप है इसलिये उत्पाद-व्यय-धौव्य स्वरुप हैं; त्रिकालवर्ती है इसलिये नित्य है। ऐसी वस्तु का कहनेवाला कोई आगम का सूक्ष्म वचन अपनी स्थूल बुद्धि से समझ में नहीं आता हो तथा जो हेतु से बाधा को भी प्राप्त नहीं होता हो वहाँ 'सर्वज्ञ की आज्ञा ऐसी है', 'सर्वज्ञ वीतराग जिन अन्यथा नही कहते' इस प्रकार प्रमाणरुप चिन्तवन वह आज्ञा विचय धर्मध्यान है।
जिनेन्द्र के परमागम का पठन, श्रवण, चिन्तवन, अनुभवन वह समस्त आज्ञा विचय है। जो श्रुत सर्वज्ञ वीतराग द्वारा कहा हुआ है, जिसको सुनने से रागी, द्वेषी, शस्त्रधारी देवों की उपासना से पराङ्मुखता हो जाये, परिग्रहधारी विषय-कषायों के धारी अनेक भेषधारियों में गुरुबुद्धि-पूज्यपने की बुद्धि नहीं उत्पन्न नही हो, हिंसा की प्रवृत्ति कभी धर्म रुप नहीं दिखाई दे, जिसके श्रवण, पठन, चिन्तवन से विषय, कषाय, देह, परिग्रह आदि से पराङ्मुखता उत्पन्न हो जाये, दयाधर्म की वृद्धि हो जाये उस आगम के शब्द व अर्थ का चिन्तवन करना वह आज्ञा विचय धर्मध्यान है,
_ कैसा है आगम ? श्री सर्वज्ञ वीतराग का उपदेशित है, रत्नत्रय स्वरुप को पुष्ट करनेवाला है, अनादि निधन है, समस्त जीवों को परम शरण है, अनन्त धर्म के धारक पदार्थों का प्रकाश करनेवाला हैं, प्रमाण-नय-निक्षेपों द्वारा पदार्थों का स्पष्ट उद्योग करनेवाला है, स्याद्वाद रुप इसका बीज है। इस की शरण नहीं पाकर के ही जीव ने अनादिकाल से चतुर्गति में परिभ्रमण किया है।
सप्त तत्त्व, नव पदार्थ, षट् द्रव्य, पाँच अस्तिकाय का स्वरुप प्रकाशन करनेवाला है, द्रव्य-गुण-पर्यायों का स्वरुप दिखलाने वाला है; गुणस्थान मार्गणास्थान योनि कुलकोडि द्वारा जीव का प्ररूपण करनेवाला है; समस्त लोक अलोक का प्रकाशक है; अनेक शब्दों की रचनारूप , अंग, पूर्व, प्रकीर्णक आदि रत्नों से भरा हुआ गम्भीर रत्नाकर के समान आगम है।
एकान्त विद्या के मद से उन्मत्त मिथ्यादृष्टियों का मद नष्ट करनेवाला है, मिथ्यात्वरूप अंधकार को दूर करने को सूर्य है, रागरुप सर्प का विष उतारने के लिये गारुड़ी विद्या है, समस्त अंतरंग पापमल धोने के लिये पवित्र तीर्थ है, समस्त वस्तुओं की परीक्षा करने में समर्थ है, योगीश्वरों का तीसरा नेत्र है, संतापरुप ज्वर का घातक है, इन्द्र-अहमिन्द्रगणधर मुनीन्द्रों द्वारा सेवित, ज्ञानी को परम अक्षय निधान, आशा-वांछा-भय का नाश करनेवाला आगम है।
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