Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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वचन है।
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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार आयु कर्म के समान ही अन्य कर्म भी बहिरंग कारण मिलने पर उदय में आ ही जाते हैं। सभी जीवों के पापकर्म-पुण्यकर्म सत्ता में विद्यमान है, बाह्य द्रव्य , क्षेत्र, काल, भावादि परिपूर्ण सामग्री के मिलने पर अपना रस देते ही हैं; यदि बाह्य निमित्त नहीं मिलता है तो उदय में नहीं आते हैं, बिना रस दिये ही निर्जरित हो जाते हैं।
करणानुयोग का कथन (२) : असद्भूत को ( अविद्यमान अर्थ को) प्रकट करना वह दूसरा असत्य वचन है। जैसे - देवों की अकाल मृत्यु कहना, देवों को भोजन ग्रासादि रूप से करने वाला कहना, देवों को मांस भक्षी कहना, मनुष्यनी को देव के साथ कामसेवन व देवांगना को मनष्य के साथ कामसेवन इत्यादि कहना, वह दूसरा असत्य वचन है।
द्रव्यानुयोग का कथन (३) : वस्तु स्वरूप को अन्य विपरीत स्वरूप कहना वह तीसरा असत्य वचन है।
चरणानुयोग का कथन (४) : गर्हित वचन कहना वह चौथा असत्य वचन है। गर्हित वचन के तीन भेद हैं - गर्हित १, सावद्य २, अप्रिय ३।
गर्हित वचन त्याग १ : पैशून्य, हास्य, कर्कश, असमंजस , प्रलपित, इत्यादि अन्य और भी आगम विरुद्ध वचन कहना वह गर्हित वचन है। दूसरे के विद्यमान व अविद्यमान दोषों को पीठ पीछे कहना, जिस वचन से दूसरे के धन का विनाश , जीविका का विनाश, प्राणों का विनाश हो जाय, जगत में निंद्य हो जाय, अपवाद हो जाय, ऐसे वचन कहना वह पैशून्य नाम का गर्हित असत्य वचन हैं। हास्य, लीला, भण्ड वचन, सुननेवालों को अशुभराग उत्पन्न करनेवाले वचन कहना वह हास्य नाम का गर्हित वचन है। अन्य को कहना कि तू ढांढ़ा है, गधा है, मूर्ख है, अज्ञानी है, मूढ़ है इत्यादि वचन कर्कश नाम का गर्हित वचन है। देशकाल के अयोग्य वचन कहना जिससे स्वयं को तथा दूसरे को महासंताप उत्पन्न हो जाये वह असमंजस नाम का गर्हित वचन है। प्रयोजन रहित ढीठपने से बकवाद करना वह प्रलपित नाम का गर्हित वचन है।१।
सावध वचन त्याग २ : जिस वचन के द्वारा प्राणियों का घात हो जाय, देश में उपद्रव हो जाय, देश लुट जाय, देश के स्वामियों में महाबैर हो जाय, गाँव में अग्नि लग जाय, घर जल जाय. वन में अग्नि लग जाय. कलह-विसंवाद-यद्ध होने लगे. दःख से कोई मर जाय, बैर बाँधले, छह काय के जीवों का घात प्रारंभ हो जाय, महाहिंसा में प्रवृत्ति होने लगे वह सावध वचन है; पर को चोर कहना, व्यभिचार कहना वह सब सावध वचन दुर्गति के कारण हैं, अतः त्यागने योग्य हैं।२।
अप्रिय वचन त्याग ३ : त्यागने योग्य अप्रिय वचन प्राण जाते हुए भी नहीं कहना चाहिये। अप्रिय भाषा के दश भेद इस प्रकार जानना – कर्कशा, कटुका, परुषा, निष्ठुरा, परकोपनी, मध्यकृषा, अभिमाननी, अनयंकारी, छेदंकरी, भूतवधकरी। इन महापापरूप महानिंद्य दश भाषा बोलने का सत्यवादी त्याग करता है।
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