Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चतुर्थ - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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दुःख को नहीं गिनकर जो अनिष्ट वस्तु का भक्षण करता है उसे जिा की तीव्र विकलता से महापाप का बंध होता है। अनेक मनुष्य भोजन के स्वाद में राग करके अनिष्ट भोजन खा कर रोग बढ़ाकर आर्तध्यान करके दुर्गति में चले जाते हैं। अतः अनिष्ट का त्याग करना ही उत्तम कार्य है।
कितनी ही वस्तुएँ अपने कुल को, व्यवहार को, धर्म को मलिन करने वाली हैं वे सेवन योग्य नहीं हैं, वे अनुपसेव्य है। शंख, हाथी का दाँत, केश, मृगमद, कस्तूरी, गोलोचन, इत्यादि से स्पर्शित हुआ भोजन, जल सेवन योग्य नहीं हैं। ऊँटनी का दूध, गधी का दूध, गाय का मूत्र तथा मल, कफ, लार, जूठन ये सेवन योग्य ही नहीं हैं। म्लेच्छ, भील, अस्पृश्य शूद्रों का स्पर्श किया हुआ भोजन अनुपसेव्य है। अशुद्ध भूमि पर गिरा हुआ, चमड़े से छुआया हुआ, बिल्ली-कुत्ता आदि से, तथा मांसभक्षी, मद्यपायी द्वारा स्पर्श किया, बनाया हुआ सभी भोजन, तथा लोकनिंद्य भोजन अनुपसेव्य है; जिनधर्मियों के भक्षण करने योग्य नहीं है, बुद्धि को विपरीत करनेवाला है, मार्ग से भ्रष्ट करनेवाला है, धर्म से भ्रष्ट करनेवाला है।
। यहाँ ऐसा विशेष जानना - श्री राजवार्तिकजी में भी पाँच प्रकार के भोग्य पदार्थ कहे हैं - जिसमें त्रसजीवों का घात होता है १, जो प्रमाद उत्पन्न करने वाला है २, जिसमें अनंत जीवों का घात होता है ३, जो अनिष्ट हैं ४, जो अनुपसेव्य हैं ५- ये पाँच प्रकार के पदार्थ सम्पूर्ण जीवनभर के लिए त्यागने योग्य हैं। जिनका त्याग सम्पूर्ण जीवनभर के लिये नहीं किया जा सके तो उसका त्याग काल की मर्यादा लेकर करना चाहिये।
खाद्य पदार्थों की अवधि : यहाँ कितनी ही वस्तुओं में तो प्रकट त्रसजीवों का घात होता है तथा कितनी ही वस्तुओं में अनंत जीवों के समूह का एक साथ घात होता है। बींधा अन्न में इल्ली, धुन प्रकट हजारों फिरते दिखते हैं। बींधा अन्न खानेवाले के द्वारा अपरिमा जीवों का घात होता है। जो गृहस्थ अनाजों का संग्रह करके रखता है उसे नित्य ही बींधा अन्न खाने से महापाप बंध होता है। इसलिये जो पाप से भयभीत जैनी है उसे अबींधा अन्न खरीदना चाहिये तथा दो महीना तक के खर्च के लिये संग्रह करना चाहिये। जब दो महीना में खा चुके तब फिर अबींधा अन्न देखकर लेना चाहिये।
थोड़ा संग्रह अच्छी तरह सोध लिया जाता है, उसकी सुरक्षा यत्नाचार से हो जाती है, यदि घुन लगता दिखाई दे तो बदलकर दूसरा मंगवा लेवे। पाँच जगह अबीधा देखकर लावे। अधिक धान संग्रह किया हो तो किसी को दे नहीं सकता, फटक नहीं सकता, बदला नहीं जा सकता। यदि बहुत घुन गया हो तथा उसे खाना ही पड़े तब नित्य ही छान-छान कर इल्ली, लट, घुनों को बर्तन में भर-भर कर रास्ते में फेंकता है जहाँ पर मनुष्यों के तथा पशुओं के पैरों के नीचे खुंद जाते हैं, मर जाते हैं, पशु चर जाते हैं।
जब अनाज में जीव होने लगते हैं तब दिन-प्रतिदिन दूना, चौगुना, सौगुना , हजारगुना छोटे बड़े बढ़ते ही चले जाते हैं। सब जगह घर में, मकान में, रसोई में, दीवार पर, चौकी पर, खान-पान
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