Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
View full book text
________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
१७६]
अर्थ :- समय पर सत्पात्र को दिया गया दान थोड़ा भी हो तो सुन्दर पृथ्वी में बोये गये वट के बीज के समान प्राणियों को छाया अर्थात् महात्म्य, ऐश्वर्य तथा विभव अर्थात् भोगोपभोग की सम्पदारूप वांछित बहुत फल देता है। अत: पात्रदान का अचिन्त्य फल है। पात्रदान के प्रभाव से सम्यक्त्व ग्रहण हो जाता है सम्यक्त्व रहित मिथ्यादृष्टि भी पात्रदान के प्रभाव से उत्तम भोगभूमि में जाकर उत्पन्न हो जाता है। ___ कैसी है भोगभूमि ? यहाँ तीन पल्य की आयु, तीन कोश ऊँचा शरीर, अद्भुत सुन्दर रूप, समचतुरस्त्र संस्थान, महाबल-पराक्रमयुक्त मनुष्य होते हैं। स्त्री-पुरुषों का युगल उत्पन्न होता है। तीन दिन बीतने पर जब कभी कुछ आहार की इच्छा होती है तब बेर के बराबर आहार करके क्षुधावेदना रहित हो जातें हैं। दश प्रकार के कल्प वृक्षों से प्राप्त इच्छित भोगों को भोगते हैं। जहाँ शीत-उष्णता का कष्ट नहीं है, वर्षा का कष्ट नहीं है, दिन-रात्रि का भेद नहीं है, सदा उद्योतरूप अंधकार रहित समय चलता है। शीतल, मंद, सुगंध पवन निरंतर बहती है, भूमि में धूल, पत्थर, तृण, कांटे, कीचड़ आदि नहीं होते हैं, स्फटिक मणि के समान भूमि है। वहाँ पर जीवन भर रोग नहीं, शोक नहीं, बुढ़ापा नहीं, क्लेश नहीं होता। जहाँ सेवक नहीं, स्वामी नहीं, स्व-पर चक्र का भय नहीं, षट्कर्म रूप आजीविका नहीं करनी पड़ती है।
कल्प वृक्ष : कल्पवृक्ष दश प्रकार के हैं – तूर्यांग १, पात्रांग २, भूषणांग ३, पानांग ४, आहारांग ५, पुष्पांग ६, ज्योतिरांग ७, गृहांग ८, वस्त्रांग ९, दीपांग १० ।
तूर्यांग जाति के कल्पवृक्ष तो बांसुरी, मृदंग इत्यादि कर्ण इंद्रिय को तृप्त करनेवाले बाजे देते हैं । १।
पात्रांग जाति के कल्पवृक्ष रत्न स्वर्णमय अनेक प्रकार के नेत्रों को आनंदकारी कलश, दर्पण, झारी, आसन, पलंग आदि समस्त प्रकार के पात्र देते हैं । २।
भूषणांग जाति के कल्पवृक्ष अनेक प्रकार के आभूषण क्षण-क्षण में पहिनने योग्य हार, मुकुट, कुण्डल, अंगूठी आदि अंगों को भूषित करनेवाले वा महल को, द्वार को, शैया को, आसन को, भूमि को भूषित करनेवाले अनेक आभूषण देते हैं । ३।
पानांत जाति के कल्पवृक्ष नाना प्रकार का पीने के योग्य शीतल सुगंधित जल देते हैं ।४।
आहारांग जाति के कल्पवृक्ष अनेक स्वादरूप अनेक प्रकार के आहार देते हैं, परन्तु वहाँ भूख का कष्ट ही नहीं होता है अतः रोग के बिना औषधि को कौन लेवे ? भोगभूमि के जीवों को प्रतिदिन भूख नहीं लगती। तीन दिन बीत जाने के बाद बेर के बराबर थोड़ा सा भोजन कर लेते हैं । ५।
पुष्पांग जाति के कल्पवृक्ष अनेक प्रकार के बहुत कोमल सुगंधित फूलों की माला, आभूषण आदि देते हैं । ६।
ज्योतिरांग जाति के कल्पवृक्षों के प्रकाश से सूर्य-चंद्रमा दिखाई ही नहीं देते हैं। सूर्य के प्रकाश से कई गुना अधिक प्रकाश इनका होता है। वहाँ इसी कारण रात्रि-दीन का भेद ही नहीं है । ७।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com