Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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जहाँ चाहे रहकर व्यतीत करते हैं। कितने ही अनेक भेषों के धारक, मंद कषायी, परिग्रह रहित, विषय रहित रहते हैं। कितने ही एक बार कोई हाथों में भोजन रख दे उसे खाकर याचनारहित विचरण करते हैं।
इस प्रकार अनेक एकांती परमागम की शरण रहित आत्मज्ञान रहित मिथ्यादृष्टि कुपात्र हैं। कुपात्रदान का फल : इनको दान देना अनेक प्रकार से फल देता हैं। जैसा पात्र, जैसा दातार, जैसा भाव, जैसा द्रव्य, जैसी विधि से दिया हो, वैसा फल प्राप्त होता है।
कितने ही तो कुपात्रदान के प्रभाव से असंख्यात द्वीपों में पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के युगलों मे उत्पन्न होते हैं, जहाँ चार-चार अंगुल बराबर चौड़े बहुत मीठे सुगंधित घास के तिनके खाते हैं, अमृत के समान स्वादिष्ट जल पीते हैं, आपस में बैर विरोध रहित रहते हैं । जहाँ शीत का कष्ट नहीं हैं, गर्मी की जलन नहीं है, हवा - वर्षादि का कष्ट रहित, एक पल्य की आयु भोगते हैं। वहाँ विकलत्रय के कष्टों से रहित अनेक प्रकार के थलचर, नभचर तिर्यंच होकर इच्छानुसार विहार करते हुए सुख से भोग भोगते हुए युगल ही साथ में पैसा होते हैं, साथ में ही मरकर, व्यंतर, भवनवासी, ज्योतिषी देवों में उत्पन्न होते हैं।
कितने ही कुपात्रदान के प्रभाव से उत्तरकुरु - देवकुरु भोगभूमि में तिर्यंच होकर जन्म लेते हैं, तीन पल्य तक सुख भोगकर, मरकर देवों में पैदा होते हैं। कितने ही कुपात्र दान के प्रभाव से हरिक्षेत्र, रम्यकक्षेत्रों में दो पल्य की आयु के धारक; कितने ही हिमवन क्षेत्र, हैरण्यवत क्षेत्रों में एक पल्य की आयु के धारक तिर्यंच युगलों में उत्पन्न होकर आयुपूर्ण कर, मरकर देवलोक में चलें जाते हैं।
कितने की कुपात्र दान के प्रभाव से छियानवे अन्तरद्वीपों में मनुष्य युगल होकर जन्म लेते हैं, इन अन्तरद्वीपों में जो मनुष्य उत्पन्न होते हैं, उनका स्वरूप ऐसा है - समुद्र की पूर्वादि दिशाओं में चार द्वीप हैं । उनमें पूर्व दिशा के द्वीप में एक पैरवाले मनुष्य पैदा होते हैं। दक्षिण दिशा के द्वीप में पूँछवाले मनुष्य पैदा होते हैं, पश्चिम दिशा के द्वीप में सींगवाले मनुष्य पैदा होते हैं, उत्तर दिशा के द्वीप में वचन रहित गूंगे मनुष्य पैदा होते हैं।
समुद्र की चार विदिशाओं के चार द्वीपों में क्रम से सांकल जैसे कानवाले मनुष्य, शष्कुली कानवाले मनुष्य, लम्बकर्णवाले एक कान को ओढ़लें - एक कान को विछा लें ऐसे मनुष्य, तथा खरगोश जैसे कानवाले मनुष्य पैदा होते हैं। सोलह दिशा तथा विदिशाओं के बीच में तथा पर्वतों के अन्त की सीध में जो द्वीप हैं, उन द्वीपों में इस प्रकार के मुखवाले मनुष्य उत्पन्न होते हैं सिंह जैसा मुख १, घोड़े जैसा मुख २, कुत्ते जैसा मुख ३, सूकर जैसा मुख ४, भैंसे जैसा मुख ५, बाघ जैसा मुख ६, उल्लू जैसा मुख ७, बन्दर जैसा मुख ८, मछली जैसा मुख ९, सर्प जैसा मुख १०, मेढ़े जैसा मुख ११, गाय जैसा मुख १२, मेघ जैसा मुख १३, बिजली जैसा मुख १४, दर्पण जैसा मुख १५, हाथी जैसा मुख १६ ।
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