Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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में नित्य ही क्लेश भोगता है, परन्तु धन खर्च करने का बड़ा दुःख लगता है, इसलिये कष्टों में ही अपने दिन व्यतीत करता है ऐसा मूर्ख राजा का, अपने दावेदारों का , पुत्र, स्त्री, भाई आदि का ही कार्य सिद्ध करता है। स्वयं तो धन की ममता लिये हुये मरकर दुर्गति में जाकर उत्पन्न होगा, तथा धन को राजा ले जायेगा या पुत्र कुटुम्बी आदि ले लेंगे। आप तो स्वयं पापी धन कमाकर के केवल इसलोक तथा परलोक में दुःख का भोगनेवाला ही रहा।
जो मूर्ख बहुत प्रकार से अपनी बुद्धि द्वारा लक्ष्मी को बढ़ाते रहते हैं, तथा बढ़ाते-बढ़ाते तृप्त नहीं होते हैं, लक्ष्मी को बढ़ाने में अनेक प्रकार का आरंभ करते हैं, पाप करने से नहीं डरते हैं, रात-दिन ही धन पैसा करने के विकल्प करते-करते बहुत रात्रि बीत जाने पर सोते हैं। दिन में प्रातः काल से ही धन के कमाने के विकल्प करने लगते हैं, समय पर भोजन भी
हीं करते हैं, अनेक लेन-देन धंधा–व्यवहार की बकवाद करते-करते बहुत तेज मूख लगने पर भोजन करते हैं। रात्रि में कागज, पत्र, लेखा, हिसाब जबाब, सवाल की बड़ी चिन्ता में मग्न होकर तीन प्रहर रात्रि बीत जाने पर सोते हैं। ऐसे मूढ़ केवल लक्ष्मीरूप तरुणी का दासपना करके दुःख भोगकर दुर्गति में गमन करते हैं।
लक्ष्मी प्राप्ति की सफलता : जो इस बढ़ती हुई लक्ष्मी को निरन्तर धर्म कार्य के लिये देते हैं, वे पंडित-प्रवीण पुरुषों द्वारा स्तुति करने योग्य हैं तथा उनका लक्ष्मी पाना सफल है। ऐसा जानकर जो दारिद्र से दुःखी धर्म सहित पुरुषों व स्त्रियों को बिना ख्याति, लाभ, पूजा की चाह के, तथा बिना उनसे कुछ अपना उपकार चाहते हुए निरंतर अपेक्षा रहित, आदर, प्रीति, हर्ष सहित दान देता है, उसका जीवन सफल है। धन, यौवन, जीवन तो प्रत्यक्ष जल में बुदबुदे के समान अस्थिर दिखाई देते हैं। दान का फल स्वर्ग की लक्ष्मी का, भोगभूमि की लक्ष्मी का असंख्यात काल तक भोग, संपदा देनेवाला है, ऐसा जानकर निरंतर दान में ही प्रवर्तन करो।
पंचमकाल में कौन उत्पन्न होता है ? यहाँ ऐसा विशेष और भी जानना कि – जिसने पूर्व जन्म में सुपात्र दान दिया है, सम्यक् तप किया है, वे पुरुष तो इस दुःखमकाल में भरतक्षेत्र में उत्पन्न नहीं होते हैं, क्योंकि इस दुःखमकाल में यहाँ सम्यग्दृष्टि की उत्पत्ति होती ही नहीं है। जो सम्यग्दृष्टि देवगति, नरकगति से आयु पूर्ण करके आते हैं, वे विदेहक्षेत्र में ही पुण्यवान मनुष्य होते हैं। मनुष्य, तिर्यंचगति का सम्यग्दृष्टि मरकर स्वर्गलोक में उत्पन्न होता है। इसलिये इस भरतक्षेत्र में सम्यग्दृष्टि आकर उत्पन्न नहीं होते है।
यहाँ किसी पुण्याधिकारी को काललब्धि आदि साम्रगी प्राप्त हो जाने पर नया सम्यकत्व उत्पन्न हो सकता है। जिन्होंने पूर्व जन्म में जैनधर्म पालकर पुण्यार्जन किया है वे भी यहाँ उत्पन्न नहीं होते हैं। इसलिये जिनधर्म में राजा उत्पन्न नहीं होते, तथा बहुत धनवान पुरुष भी जैनियों के कुल में उत्पन्न नहीं होते हैं, यदि जैनियों के कुल में बहुत धनवान उत्पन्न होते हैं तो वे जिनधर्म रहित ही होते हैं।
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