Book Title: Ratnakarandak Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Mannulal Jain
Publisher: Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates तृतिय - सम्यग्दर्शन अधिकार]
[११५ जीव देखे हैं और परमागम में कहे हैं। इसलिये अन्न-जल आदि का असंख्यात वर्ष तक भक्षण करने पर उसमें जो एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा होती है उससे अनंतगुणे जीवों की हिंसा एक सुई की अणिमात्र मांस के खाने में होती है।
एक इंद्रिय जीव की हिंसा व त्रस जीव की हिंसा बराबर की नहीं है, दुःख में भी बड़ा अंतर है, ज्ञान में भी बड़ा अंतर है। एक इंद्रिय का शरीर रस , रुधिर, हाड़, मांस, चाम आदि धातु-उपधातुओं से रहित होता है। मांस भक्षण में जैसा तीव्र परिणाम तीव्र निर्दयपना है वैसा अन्न के भक्षण में नहीं है। जैसे अपनी स्त्री के स्पर्श करने में तथा अपनी पुत्री व माता के स्पर्श करने में परिणाम समान नहीं होते हैं।, बड़ा अंतर है। इसलिये बहुत कहने से क्या त्रस जीवों के घात करने में घोर पाप जानना।
ऐसी आशंका भी नहीं करना चाहिये कि - यह सिंह, व्याघ्र , सर्प आदि बहुत प्राणियों का घातक है, इसको मार डालने से बहुत जीवों की रक्षा हो जायेगी ? ऐसी मिथ्याबुद्धि से हिंसक जीवों की भी हिंसा नहीं करना चाहिये। आप किस-किस हिंसक को मारोगे ? चिड़िया, कौवा, सुअर, मैंना, तीतर, बाज, गिद्ध आदि सभी पक्षी हिंसक हैं ? तथा कीड़ा, लट, मकड़ी, माखी, सर्प, बिच्छू, ऊंदरा, कूकरा, बिलाव, सिंह, स्यार आदि अनेक तिर्यंच, मनुष्य आदि सभी जीव हिंसा पाप कर्म करने के कारण हिंसक ही हैं, तुम कौन-कौन की हिंसा करोगे ? तुम्हारे मन में दूसरे सभी हिंसक जीवों को मारने का विचार हुआ तब तुम तो सभी हिंसकों को मारनेवाले महाहिंसक हो गये। तुम्हारे समान पापी कौन रहा ? इसलिये हिंसक जीवों, की हिंसा करने के भी परिणाम कभी नहीं करना चाहिये।
हिंसक किसने बनाया है ? सभी जीव अपने पूर्व में बंध किये कर्मों के उदय आने पर उत्पन्न होते हैं। पाप का-हिंसा का संतानक्रम अनन्तकाल से चला आ रहा है। इसे कौन मिटा सकता हैं ? पापी जीव किसने बनाये ? पुण्यवान जीव किसने बनाये ? सभी कर्म की विचित्रता है। काल के प्रभाव से पापी जीवों को पाप का फल देने के लिये अनेक पापी जीव उत्पन्न होते है। इसे मिटाने में कौन समर्थ है ? इसलिये दयावान होकर सभी जीवों पर दया करना चाहिये।
ऐसा विचार ही नहीं करना चाहिये कि - यह जीव हिंसक है, यदि बहुत जीवेगा तो बहुत पाप का बंध करेगा, यदि इस पापरूप पर्याय से छूट जाये तो इसे बहुत पाप का बंध नहीं होगा? ऐसी करुणा करके भी पापी जीवों को नहीं मारना, सभी जीवों पर तुम तो दया ही करना।
ऐसा मिथ्याविचार भी नहीं करना कि - यह जीव बहुत दुःख से दुःखी है, यदि मर जाय तो शीघ्र ही दुःख से छूट जायेगा, क्योंकि यदि मर जायगा तो यह शरीर-वर्तमान की पर्याय ही छूटेगी, इसे बंधा हुआ असाता कर्म तो नहीं छूटेगा ? यदि अभी यहाँ से छूट गया तो अन्य पर्याय तिर्यंच, नरक, मनुष्यादि की पावेगा वहां कई गुणा अधिक रोग, दारिद्र आदि प्राप्त होगा, तथा बहुत काल तक दुःख भोगेगा। तुम कहां-कहां दुःख से छुड़ाने जाओगे ?
बहुत कहने से क्या लाभ ? यदि कदाचित् सूर्य का उदय पश्चिम दिशा में होने लगे, अग्नि शीतल होने लगे, चंद्रमा की किरण उष्ण निकलने लगे, सूर्य की आताप शीतल हो जाये, सम्पूर्ण पृथ्वी
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