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रणपिंगळ.
५१ अरिल, अडिल्ल, अलिला, अलक. ४+४+४+४=१६.
लेमा जगण न आणवो. अन्ते बे ल. १,५,९,१३ मात्राए ताल.
कल षोडशमां जगण ज ना रच, ११९६ द्विलघु अंते धरौं रचना रच; ११८८ अलिला भण शशि शर नव उपर, १२१७
ताल वळी जख पर पाछी धर.६३. १०६७ श्रीधर पिंगळमां जगण न लाववा केहेछ; चित्रसेन टीकावाळु मागधी पिंगळ, छंदार्णव अने प्राकृत पिंगळसूत्रनी टीका तथा गणप्रस्तारप्रकाशमा चार चौकलिया तेमां जगण न आवे, अने अंते भगण आवे एम कयुं छे; एज प्रमाणे करी एक पदमा बे वार यमक लावीने मागधी छंदःशतक एने मडिल नाम आपछे.
उपर प्रमाणे १६ मात्रा सर्वमान्य छतो छंदोवृत्तमुक्तावलीमां तेनी १८ मात्रा कहीने नीचे प्रमाणे (जगण सिवायना चार डगण)+बे लघु- उदाहरण आपेछे:
" बल धारण वारण मान विदारण,
भवकारण दानववंशनिवारण; मुखचंद्रसुधाकृत लोचन पारण,
जय कृष्ण कृपाकर सेवक तारण.” पण प्रारंभमां वे लघु वधारवानी तेनी भूल थएली लागेछे, केमके एणेज मरिल्ल पछी पादाकुलक (१६ मात्रा)- लक्षण बांधतां कर्तुं छे के-“अरिल्लमां भंते गुरु आवे तो पादाकुलक (१६ मात्रा) थाय"! एटले तेनुंज केहेवूपरस्पर विरोधी छे. वृत्तरत्नाकरनी नारायणमही टीकामां अरिलनुं माप अमे लख्युं छे तेवं छे, पण छंदोवृत्तमुक्तावली प्रमाणे नथी. ५२ सिंहविलोकन, सिंहविलोकित. विप्र के सगण गमे ते आणीने मात्रा १६ करवी. पण तेमां अंते सगण अवश्य आणवो.
३, ७, ११, १५ मात्राए ताल. सगणे द्विज सोल कळा करजो, ४४२ कर जोडि 'स' छेवटमां धरजो ४४२
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