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४ ।। १. कुंडलिये कर छ कल पर, डगण-जगणवण-जाण; २. समे एक *त्रण विषममा, एम दुहा पद आण; *१२ ३. एम दुहा पद आण, काव्य झड प्रथमन करता; ४. छ पर चोकला चार, उपर कळी कल बे धरतम ५. छ पर चोकला चार,एन पद फरी वळी करिये; ६. दुहा आदिना शब्द, अन्त धरवा कुंडलिये. १८६
वाणीभूषण अने प्राकृत पिंगळसूत्रमा दोहराना चार चरण गणी कुल आठ चरण मानेछे. - काव्यमा ६+१२ (४+४+४)+६ तेमां १२. मात्रा पैकी छेल्ले गण विप्र के जगण आणवानो नियम छे; पण कुंडलियामां तो छप्पय नातिनी पेठे मागधी नागपिंगळना उदाहरणमां त्रण चोकलियामा छेल्लो विप्र के जगण आण्यो नथी. वृत्तमौक्तिकमा श्रीजो सगण उदाहरणमा मोवामां आवेछे, पण काव्यना नियममां श्रीजो विप्र के जगण लाववा तेणे लख्यु छतां कुंडलियामां ते नियम. पोते पाळ्यो नथी. छंदः शास्त्रमा तो त्रण गणमां स ज़ के विप्र गण काव्यमा आणवानो नियम को छे ते प्रमाणे तेणे कुंडलियाना पोताना उदा. हरणमां श्रीजो सगण आण्यो छे. रूपदीप तथा लखपत पिंगळ अने वाणीभूषणमां दुहा उपर रोला जाति लायवानुं कहेछे. आ सर्व उपर विचार करीने कुंडलियाने माटे अमे उपर प्रमाणे नियम (छप्पयने अनुसरतो) को छे ते हाल सुधी वृजभाषामां अने गूजरातीमां चालेला नियमने अनुसरतो पण छे. काव्यनी बीजी अडनी प्रथम यति फरीने पाछी त्रीजी झडनी प्रथम यतिमा आणवी एको नियम छतां पछवाडी पाळवामा आक्तो नथी. "लखपतजशसिंधु". मां पाळ्यो छतां केटलाक कुंडलियामां तेम कर्यु नथी माटे ते विकल्पे राखनो ठीक छे.
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