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वर्णदंडक.
वर्णमेळ.
४३९
कवित प्रकरण. घनाक्षरी आदि लइने केटलाक दंडक कवितना सामान्य नामथी ओळखायछे माटे आ ठेकाणे "कवित” विषे विस्तार आपवानी अगत्य छे. ... छंदःप्रभाकरमां कह्यु छे के "कवितनी लय ठीक थवा माटे प्रथम तेनी ध्वनी सिद्ध करवी जोइये, पछी तेमां सम अथवा विषम प्रयोगनी योग्य योजना करवी जोइये. कवितमा सम (बेकी) प्रयोगबहु कर्णमधुर छे, परंतु कहिंक विषम (एकी) प्रयोग आवी जाय तो तेनी आगळ एक बीजो विषम प्रयोग आणवाथी ते विषमता मटी समता बनी जायछे.
कवितनो साधारण नियम एवो छे के- पेहेलां त्रण अष्टक अने पछी एक सप्तक मूकवं. अर्थात् ८,८,८,७ एम वर्ण मूकवा, परंतु शब्दयोजना के विभक्तियोना संबंधथी ए विभाग करवामां कंइ कंइ अंतर पडी जायछे. जेमकेःआनंदके कंद जग ज्यावन जगत बंद दशरथनंदके निवाहेइ निबहिये:
कहैं पदमाकर पवित्र पन पालिकेको चोर चक्र पाणिके चरित्रनकोचहिये:
अवधबिहारीके बिनोदनमेंबीधिबीधि गीध गुह गीधेके गुणानुवाद गहिये;
रेनदिनआठोजाम राम राम राम राम सीतारामसीताराम सीताराम कहिये.
- आवी कठणाइने लीधे प्राचीन ग्रंथकारोए केवळ १६, १५ यति मानी छे.
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