Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 713
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ रणपिंगळ. विषमवृत्त. (विषमपादे चोथा अक्षर पछी भगण आवे, २०४ भविपुला'. सम पदमा भन त के ज मांथी कोइ आवे. विषमे तो चार पछी, भ थायछे पदे खरे; .. भविपुलामां भ न त, वा ज पादे समे धरे. १ केटलाकनो मत एम पण छे के, प्रत्येक चरणमां चार अक्षर पछी भगण आणिये तो ते भविपुला केहेवाय, तेवीज रीते रविपुला, नविपुला तथा तविपुलामां पण प्रत्येक चरणमा चार अक्षर पछी जे नामनी विपुला होय ते गण आणवा. दरेक विपुलानी रूपसंख्यानो प्रकार उपर जे नियम बताव्या छे तेथी समनी लेवो. २०५ रविपुला. र विषम पदे चोथा अक्षर पछी रगण आवे, "। बाकी भविपुला प्रमाणे. चार पूढे भा न ता के, जमाथी को' धरे समे; विपुला रमा र धार, चार पाछळ विषमे. २०६ नविपुला. विषम पदे चोथा अक्षर पछी नगण आवे, बाकी भविपुला प्रमाणे. चार धारी भ न त के, ज धरो ने पदे समे; नविपुला विषममां, न धरीने रचो तमे. २०७ तविपुला. .. विषमपदे चोथा अक्षर पछी तगण आवे, " बाकी भविपुला प्रमाणे. चार पूछे भा ना त के, ज समे तो करो तमे; तविपुलामां थायछे, चार पूठे त विषमे. For Private And Personal Use Only

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