Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 719
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रणपिंगळ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ विषमवृत्त. " प्रभुस्तुति कटाव अमृतध्वनि छंद " एम लख्युं छे; पण प्रारंभमां दुहाने बदले चौद चौद मात्रानां चार चरण मूकीने इच्छापूर्वक अष्टकलनी टूको मूकी छे अने अंतमां टेकना अनुप्रास मेळवावा माटे छेल्ला अष्टकल उपर बे गुरु वर्णनी चार मात्रा वधारी प्रारंभनो चौद मात्रावाळो चारे चरणनो टेक फरी मृक्यो छे, जेमके : प्रारंभ. "जय जय जन अंतरजामी, निर्मळ गुणमय बहुनामी; खुदमां न मळे कशी खामी, छो सकळ जगतना स्वामी.” 'टेक. अन्त. सदा स्वतंतर, दलपत अंतरगामी; जय जय (इत्यादि चारे चरण प्रारंभनां मूक्यां छे.) कवि दयारामें टेकमां चौद चौद मात्रानां बे चरण मूक्यां छे. . ( जुवो दयारामकाव्यसंग्रह त्रीजी आवृत्ति पृ. ५९६, ) छेवटे टेकने अनुसरतुं एक एक चरण आण्युं छे. " श्री वृंदावन अस धैर्ये, प्रीतम प्यारी रस पैयें. " ए प्रमाणे प्रारंभमां टेक छे, अने अन्तमां " कहो जु क्यां लग गये, श्री वृंदावन अस धैये.” इत्यादि. मराठी भाषामां अमृतरावना कटाव वधारे वखणायछे. ( नवनीत बीजी आवृत्ति पृ. २२४) एमां जूदा जूदा, कटावमां नीचे प्रमाणे जूदां जूदां ध्रुवपद अथवा टेक छे. For Private And Personal Use Only

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