Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 718
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दक्षिणना छंद. www.kobatirth.org अन्यदेशीय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ आठतणी कला बार, साततणी अभियार, एम बधी मळी धार, सुडतालीस खरे मात्रानो न नि'म कांय, भण ओवी रागमांय, सर्व प्रास मळे जांय, घनाक्षरी ते ठरे ७ कटाव -कटिबंध. कटाव रचना करवा काजे, आठ कला प्रति यति बिराजे; वे यति चरणे चरणे लावो, अथवा फावे तेम बनावो; यति यति केरा प्रासो मळता, लागट एक बीजाशुं भळता; करण घाटपर मधुर ज लागे, रणकारा प्रासोना वागे; एवी रीते प्रीते प्रीते, प्रास घरीने सोज करीने; मोज प्रमाणे टाणे टाणे, टूको मूको; कटिबंधनो बंध बांधवा, बे छेडा सरखाज सांधवा; प्रथम चरण ते ध्रुवपद जाणो, टेक नाम तेनेज प्रमाणी; ते तो छेले चणे राजे, कटाव रचना करवा काजे. सामान्य कटावनी रचना तो अमे उपमनानी छे ते प्रमाणेछे. एमी आठ आठ मात्रानी टूको इच्छा पूर्वक वधारी शकाय छे. केटलाएक प्रारंभमां ध्रुवपद जूदां जूदां मूकेछे. केटला - एक अमृतध्वनिनेज कटाव गणेछे, जुवो पृ. १४२ मात्रामेळ विषम जाति अंक १६, एमां प्रारंभमां एक दुहा अने पछी त्रण अष्टकलनुं २४ मात्रानुं समं चरण एवां चार चरण आवेछे. कवि दलपतरामे (जुवो दलपतकाव्य प्रथम आवृत्ति पृ. १२६ मे) For Private And Personal Use Only

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