Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 679
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९८ ११६ सुरहिता. रणपिंगळ.. भाभ भ भाग समेथी भुजंगभृता. विलोमे अनंगपद, जुवो अंक ११५. ११५ अनंगपद. [ १,२. भ भ भ भग. = १३ कर्मठ. ८७९ २, ४. स स स स ग. १३ तारक. ८२२ ओज भ भ भ भ गाथी अनंगपदे; कवियो सममां स स स स ग आणो. भुजंगभृतानुं विलोम अंक ११४. s १, ३. न न स सग. = १३ चण्डी. ८२५ ( २, ४ . त न न न ग. १३ रूप. ४,०९३ विषम चरण न न सा स ग आण्ये; ताना न न ग समर्थक सुरहिता. अतिसुरहितानुं विलोम अंक ११७. www.kobatirth.org ११७ अतिसुरहिता. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १, ३. त न न नग. = १३ रूप. ४,०९३ ( २, ४ . ननस सग. - १३ चण्डी. ८२५ ओने त न न न ग अतिसुरहिता; ननस सग समपदे रचजी जी. सुरहितानुं विलोम अंक ११६. ११८ मधुवारी. {१,३. त म र स . १३ अट्टासिनी. ८९९ स ज स जग. = १३ मंजुभाषिणी. १९८ सजसा जगा चारों ओज छे; ता भार साल समे रचो कवि ! आप. निर्मवारीनुं विलोम, जुबी अंक ११९. ११९ निर्मधुवारी. अर्द्धसमवृत्त. १,३. त भर सल. = १३ अट्टासिनी. ८९९ २,४. सज सजग . = १३ मंजुभाषिणी. ८५८ ला भार साल थॉ ओज निर्मधुवारों; For Private And Personal Use Only

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