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रेणापंगळ.
विधमत्त
केटलाक नीचे प्रमाणे माप बतावेछे:-- १,३ विषममा ४ वर्ण+य+लके ग-८
२,४ सममां म+ग+य+ल के ग-८ वाग्वल्लभमां वक्त्रनो श्लोक नियम-१,२,३,४ पदमा पांचमो लघु ने छठो गुरु आवे. १,३ पदमां ७मो वर्ण गुरु, २,४ पदमां ७मो लघु आवे. छंदोवृत्तमुक्तावलीमा तथा प्राकृत पिंगळसूत्रमा पण ए प्रमाणे नियम छै:
पांचमो लघु चारेमां, छ साते गुरु तो करो;
समे साते लघु लावो, श्लोके आठन अक्षरो.
हलायुधवृत्ति वगेरे छंदोग्रंथमां अनेक प्रकारना गण भेदथी आ अनुष्टुप् वृत्तने "विषमवृत्तमां" वक्त्र एवां नामथी ओळखाव्यां छे. सघळां पुराणोमां सामान्य रीते आठ अक्षरना पदवाळां वृत्त अनुष्टुपना नामथी ओळखाय छे,
चक्नी रूपसंख्या नीचे प्रमाणे नीकळी शकेछेःएमो आठ अक्षर आवेछे, तेमां पेहेलो अक्षर गुरु के लघु आवतां तेनोखे रूप थाय; अने त्यार पछीना त्रण अक्षरमां न अने सगण वयें , तो ते बे आठ गणमाथी बाद करता बाकी ६ रूप रह्यां, ते वडे आगलां बे ने गुणतां १२ रूप थयां; त्यार पछी पांच, छ, भने सातमा अक्षरने ठेकाणे मात्र एकज यगण आवेछे, तेनुं एकजेर रूप थायछे, ते उपर एक अक्षर लघु के गुरु आवेछे, एटले तेन बे रूप थाय. तो ए प्र. माणे १२४१४२=२४ रूप एक चरणना थाषा वीज रीते बीजा घरणनां तेटलांज रूप थतां २४४२४=१७६ रूप पूर्वा नां थाय अने तेटलांज उत्तरार्द्धनां थतां ५७६४५७६%
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