Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 687
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणांपेंगळ.. विषमवृत्तं. ३ . सौरलक. सज सजग-१३ भा न भ ग अनले धरजो, स ज सा ज गा पद चतुर्थमां सजो. १ छंदोमंजरी तथा प्राकृतपिंगळसूत्रमा प्रथम जणावेलु उद्गतावृत्त आपीने आ माप पण जणाव्युं छे, अने तेनुं उदाहरण नीचे प्रमाणे आप्युं छे: १ विललास गोपरमणीषु, .. २ तरणितनया प्रभोद्गता; ३ कृष्णनयनचकोरयुगे, ४ दधती सुधांशुकिरणोमिविभ्रमं. उद्गतानुं त्रीजुं पद शब्दकल्पद्रुममां मळ्तुं आवतुं नथी पण छंदो- . मंजरी साथे मळेछे तेमां बीजो प्रकार छे. १४१ सौरभक, (१. सं जस ल=१० रसभूम. अंक ५०९ सौरभ, १२. न स ज ग=१० अनुचायिता.अंक ४७१ . *) ३. र न भ ग=१० रूप. ४४३ (४. स ज स जग=१३ मंजुभाषिणी. अंक ८५८ प्रथमे स जा स ल कराय, द्वितीय चरणे न सा ज गा; छे तृतीय पद रा न भ गा, स ज साज गा पद चतुर्थ सौरभे. पेहेलु, बाजूं, अने चोथु चरण उद्गता प्रमाणे थायछे. मात्र त्रीजुं चरण जूदं पडेछे. आ विषे वागवल्लभ, प्राकृतपिंगलसूत्र, अने मंदारमरंदचम्पूनी संमति मळेछे. परिभूत फुल्ल शत पत्र =१० वन विसृत गन्ध विभ्रमा १० कस्य हुन्न हरतीह हरे १० मुख पद्म सौरभ कला तवाद्भुता=१३ पण खरं उदाहरण उपर प्रमाणे छे तेने बदले संस्कृतप्रोसडीमां For Private And Personal Use Only

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