Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 677
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ रणपिंगळ. अर्द्ध समवृत्त. (१,३. स स ज ग ग =११ विमला. ५६७ १०५ शिशुलीला. " २,४. स र जग ग.=११ रूप ३४० विषमे रचजो ससा जगागा; शिशुलीला समे सराज गा गा. (१,३.भ र र ल ग.११.वारयात्रिक.अंक ५९६ १०६ औपगवीत. १,२ १२,४.न र र ल ग.११. ललित. अंक १९७ औपगवीतमां भा र रा ल गा; समविषे करो ना र रा ल गा. औपगव, विलोम, जुवो अंक १०४. १२,१२ नां रूप १,६७,७३,१२० थायछे. १०७ कौमुदी. १३ (१,३.न न भ भ.-१२ रूप. ३,४८० १२,४.न न र र.=१२ चपलाक्षिका.अंक७२१ न न भ भ विषमे करजो कवि! न न र र सममां धस्ये कौमुदी. _(१,३.स भ ज य.=१२ शरमेया. अंक ७०१ १०८ उपसरसीक. १२,४. त भ ज य.=१२ नीरान्तिक.अंक७०२ स भ जा उपसरसीक य आवे; ता भा ज या युज विषे कवि लावे. सरसीकनुं विलोम, जुवो अंक १०९. . [१,३. त भ ज य.-१२ नीरान्तिक. अंक ७०२ ।२,४. स भ ज य.=१२ शरमेया. अंक ७० १ ता भा ज या थी सरसीक अयुग्मे; स भ जा या कवि ! पदे कर युग्मे. उपसरसीक, विलोम जुवो, अंक १०६. For Private And Personal Use Only

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