Book Title: Ranpingal  Part 01
Author(s): Ranchodbhai Udayram
Publisher: Kutchh Darbari Mudrayantra

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Page 684
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असंकीर्ण. वर्णक. १४ उभय एटले आदि अने अंत एम वे स्थाने बे गुरुआवे. १३३ कलिका, (१. १० ल+२ ग-१२ वर्ण. रूप १,०२४ २. ६ ल+२ ग% ८ तुंग, तुंगा.अंक २९० मञ्जरी, मन्डरी. ) ३. १४ ल+२ ग=१६ शिशुभरण. १,०८० ( ४. १८ ल+२ ग-२० रूप २,६२, १४४ दश ल पर ग ग प्रथम दीजे, छ ल ग ग पद बीजे; मनु ल पर ग ग तृतीय पद धरजो जी, १०८ दश वमु ल पर ग ग चतुरथ चरण करजो जी. १ मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे. (१. १० ल+२ग=१२ रूप १,०२४ १३४ लवली.) २. १४ ल+२ग-१६ शिशुभरण अंक १,००० । ३. ६ ल+२ग= ८ तुंग, तुंगा. अंक २९० ४. १८ ल+२ग=२० रूप २,६२,१४४ दंश ल पर ग ग प्रथम आणो, (आपोउनुं २जु पद = १३० मनु ल उपर द्वि ग लवली द्वितीय जाणो; (,, ३ जु) छ ल द्वि ग पद त्रीजे, (आपीडन प्रथम पद) चतुरंथ पद दश वनु ल उपर टौंक ग ग कीजे. (,, ४ थु) आमां सकल चरणने अंते वे गुरु आवे. वृत्तरत्नाकर तथा मंदारमरंदचम्पू प्रमाणे. ( १. १४ल+२ग-१६ शिशुभरण.अंक १,०८० १३५ लवली.)२. १०ल+२ ग=१२ वणे. रूप १,०२४ (द्वितीय)) ३. ६ल+२ग= ८ तुंग, तुंगा. अंक २९० (४. १८ल+२ग-२० वर्ण. रूप २,६२,१४४ प्रथम चरण मनु ल उपर द्वि ग दीजे, १४ १०+८ For Private And Personal Use Only

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