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रणागळ.
समत.
- सत्य छ के-"शिष्टस्य गतिश्चिन्तनीया.". परंतु सूक्ष्मदृष्टिथी जोइयेछिये तो, एमां पण उपर जणावेलो नियम पळायछे. बीजा अंने त्रीजा चरणना पूर्वार्द्धमां १६ वर्ण छे, तो तेमाए ७ विषम आगळ ९ विषम आवीन जायछे, एटले बे विषम मळीने एक सम थइ जायछे. परंतु उत्तरार्द्ध केवळ १५ वर्णन थायछे, ते पोते विषम अंक छे, एटले तेना विभागमां बे पैकी एक स्थानमां विषमता अवश्य आववानीज. ते कारणथी आठ आठ वर्गना त्रग अष्टक अने अंतमां एक सप्तक मानी लेवु बराबर छे.जेमके उपरनुं कवितन नीचेना कोष्टकमां बताक्वामां आवेळे:
आनंदके कंदजग ज्यावन जगतवंद दशरथ नंदके नि बाहेइ निबहिये;
कहैं पदमाकर पवित्रपन पालिकेकों चोरचक्रपाणिके च रित्रनको चहिये;
अवधबिहारीके बी नोदनमें बीधिबीधि गीधगुहगीधेके गु णानुवाद गहिये;
रैनदिनआठोजाम रामराम रामराम सीतारामसीताराम सीताराम कहिये.
जे अष्टकमा सम अधिक होय तेने "सम" अने जेमां विषम अधिक होयतेने विषम" कहेवायछे. सम विषमनो विचार विशेषे करीने अष्टकना प्रथमार्द्धमांन करवो जाइये. सप्तकमां तो बधा प्रयोग विषमज थायछे ते माटे नीचे जणावेला नियमो ध्यानमा राखवा जोइयेः--
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