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वर्णदण्डक.
वर्णमेळ.
४१७
वर्णदण्डक. छन्वीश वर्ण उपरांतना सम चरणना पद्यने दंडक केहेछे. पण पिपीडिका आदि केटलांक छव्वीश अक्षर उपरांतनां पद्य छ तेनी गणना आमां थती नथी. __ओछामा ओछा २७ वर्ण अने घणामां घणा ९९९ वर्णन एक पाद थाय एटलो तेना एक चरणनो विस्तार छे; एवां चार समचरणनो एक दंडक थायछे. छंदःशास्त्रमा सूत्र 'छे के,
दंडको नौरः ७।३१। । २न+र आववाथी दंडक थाय छे. आ सूत्रनी वृत्तिमा हलायुधे २न उपर ७रगण आवे एम कयुं छे, पण
प्रथम थंडवृष्टिःप्रयातः ७३२। ए सूत्रमा पेहेलो दंडक २७ वर्णनो चंडवृष्टिप्रयात थायछे, एम केहेछे, तो २न उपर इच्छा पूर्वक रगण आवे ते दंडक केहेवाय, एम मानवामां आव्युं छे ते उचित छ.
__ अन्यत्र रात माण्डव्याभ्याम् ।७।३३। ए सूत्रमा एम केहेछे के, रात अने माण्डव्य ऋषियोए आ चंडवृष्टिप्रयातने अन्य स्थाने बीजं नाम ठराव्युं छे, पण नारायणभट्ट केहेछे के ए ऋषियोए एनुं बीजुं नाम नथी ठराव्यु.
शेषः प्रचितः ।७।३४। आ चंडष्टिप्रयात उपरांत दंडकप्रस्तारपूर्वक रगण वधता जाय तेनी सामान्य संज्ञा प्रचित अथवा प्रचितक केहवायछे. पछवाडे गयेला वर्णछंदोमां अकेको वर्ण वधता २६ वर्ण सुधी छंद बनेछ, तेम अहिं अकेको गण वधवाथी प्रचितक थायछे.
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