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रणापेंगळ
३ विश्लोक. प्रत्येक पादमां १६ मात्रा, तेमां चार मात्रा पछी जगण अथवा विप्रगण आणवो; बीजी नियमसर आवे. पिंगलाचार्य पांचमी ने आठमी मात्रा लघु आणया केहेछे. बाकी चारे चरणमां गमे तेम लाव. ते पण उपरना मत साथे मळतुंन छे. १, ५,९. १३ मात्राए ताल.
प्रति पद विषे कला कल लावे, श्रुति कल पछी ज के द्विज आवे; विश्लोक नियम एमज भाळो,
आदि पछाथी चडता श्रुति तालो. २१८ एनी रूपसंख्या नीचे प्रमाणे थायछे:
एमां पेहेले स्थाने जगण सिवायना चार गण आवेछे, माटे तेनां ४ रूप; बीजे स्थाने विप्र के जगण आणवा खास नियम छे, माटे तेनां बे रूप; त्रीजा स्थानमा कर्ण के भगणन आवेछे, केमके जगण, सगण के विप्र ए त्रण गण आववाथी नवासिका के चित्रानुं पाद बनेछे, माटे त्रीना स्थाननां रूप बेज; अने चोथा स्थानमा अते गुरु लाववानो सामान्य नियम होतां तेना पण रूप बेन, तेथी ४४२४२४२=३२४३२=१०२४४ १०२४=१०,४८,५७६ रूप बधां मळीने थायछे.
४, नवासिका, वानवासिका. आठ मात्रा पछी जगण अथवा विप्रगण, बाकी गमे तेम मात्रा आवे. पिंगलाचार्य केहेछे के, नवमी ने बारमी मात्रा प्रत्येक पादमां लघु आणवी, (एनो अर्थ पण एज थायछे, केमके, नवमी ने वारमी मात्राए लघु, जगण अथवा विष होय तोज आवे,) बाकी गमे तेम आवे. १,५,९,१३ मात्राए ताल,
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