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रणांगक
प्रमाणे एटले बीजु दल ४ज+४+ज+४+ल+४+गु=२७. जघनचपला प्रथम दल, आर्या सम तो अगत्य करों आवे; चपला समान बीजुं, सदाय तो सुकवि मन भावे. ७१
छंदोबोधमा पूर्वार्द्ध मुखचपला प्रमाणे लाववा कहुं छे, पण ते मत ग्राह्य नथी.
५४ उभय (महा) चपला. · जेनां बने दलमा चपलानो नियम पाळवामां आवे ते. १. ४+च+४+३+४+ज के वि०+४+गु-३०. २. ४+ज+४+ज+४+ल+४+-गु-२७. चपला समान जेना, दलो बने बे उभयजचपला छ चपला महा बळी ते, कवि कहेछे खरे आ छे. ७२
एक पथ्या त्रग विपुला थइने अर थाय अने वळी ते चार भेद साथै त्रग प्रकारनी चपला मिश्र थतां तेना बार भेद थाय छे, ए रीते एक आर्याना सोळ भेद थायछे त नी प्रमाणेः
५५ (१) पथ्यार्या. . आर्या सम पथ्यार्या, पण बारे पद गणांय विपमे तो; बीजे अढार यातां, चोथे पंदर कलाए तो. ७३
५६ (२) आदि विदुलार्या. आदि दले त्रीमा गगकेरो, शब्दन पूरो थतां यति छे; आदि वियुला आर्या, रचनो एम कविनी मति छे. ७४
आ उदाहरणमा त्रीजो गण ने बार मात्राए गण ए शब्दना ण आगळ पूरो थाय छे. ते शब्दनो छठी विभक्तिनो प्रत्यय केरो छे ते चौथा गणना अक्षरथी विपुल-विस्ताराय छे ने ते ठेकाणे यति आकेले.
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