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मात्रामेळ.
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विषमजाति.
जेनां चारे पादनी मात्रा अथवा लक्षण भिन्न भिन्न होय अथवा जेनां समे सम अने विषमे विषम पाद मळतां न होय; समेसम मळे पण विषमे विषम न मळतां होय अथवा जेनां विषमेविषम पाद मळे पण समेसम न मळे अथवा चार करतां विशेष पाद जेमां होय अर्थात् जे जाति मात्राना सम के अर्द्धसममां न होयं ते विषम जाणवी. ? रसिका, उत्कष्टा, उक्कच्छा, सुललित, छ पाद-मात्रा ६६ बे विप्र+ल+ल+ल= १ १ मात्रा. एवां छ पाद, (वृत्तमौक्तिक प्र.)
प्रति चरण कल हर कर, सकल कल पण लघु धर, यति नि'म चरण महि नहि, सकल पद पड रच अहि, सुललित कहाँ हृदय धर,
रसिक अपर वळी उचर. १७० . छंदःशास्त्रमा ११ मात्रानुं एक पद एवां छ पाद लाववा कहछे. वागवल्लभमां रसिका तथा सुललितमां सर्व लघु लाववा केहेछे; वृत्तरत्नाकरनी नारायण भट्टी टीकामां उत्कष्टा नाम आपी बे चोकल+ १ त्रिकल (४+४+३)=११ मात्रा आणवा कर्तुं छे. एटले विप्रगणन आवे एवो अभिप्राय नथी.-वळी तेना आठ भेद कल्प्या छे. ते जो सर्व लघु आणवानुं लक्षण मान्य राखिये तो थइ शके नहि. आ जातिमा छए चरणमां मळीने
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