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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रणांगक प्रमाणे एटले बीजु दल ४ज+४+ज+४+ल+४+गु=२७. जघनचपला प्रथम दल, आर्या सम तो अगत्य करों आवे; चपला समान बीजुं, सदाय तो सुकवि मन भावे. ७१ छंदोबोधमा पूर्वार्द्ध मुखचपला प्रमाणे लाववा कहुं छे, पण ते मत ग्राह्य नथी. ५४ उभय (महा) चपला. · जेनां बने दलमा चपलानो नियम पाळवामां आवे ते. १. ४+च+४+३+४+ज के वि०+४+गु-३०. २. ४+ज+४+ज+४+ल+४+-गु-२७. चपला समान जेना, दलो बने बे उभयजचपला छ चपला महा बळी ते, कवि कहेछे खरे आ छे. ७२ एक पथ्या त्रग विपुला थइने अर थाय अने वळी ते चार भेद साथै त्रग प्रकारनी चपला मिश्र थतां तेना बार भेद थाय छे, ए रीते एक आर्याना सोळ भेद थायछे त नी प्रमाणेः ५५ (१) पथ्यार्या. . आर्या सम पथ्यार्या, पण बारे पद गणांय विपमे तो; बीजे अढार यातां, चोथे पंदर कलाए तो. ७३ ५६ (२) आदि विदुलार्या. आदि दले त्रीमा गगकेरो, शब्दन पूरो थतां यति छे; आदि वियुला आर्या, रचनो एम कविनी मति छे. ७४ आ उदाहरणमा त्रीजो गण ने बार मात्राए गण ए शब्दना ण आगळ पूरो थाय छे. ते शब्दनो छठी विभक्तिनो प्रत्यय केरो छे ते चौथा गणना अक्षरथी विपुल-विस्ताराय छे ने ते ठेकाणे यति आकेले. For Private And Personal Use Only
SR No.020597
Book TitleRanpingal Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRanchodbhai Udayram
PublisherKutchh Darbari Mudrayantra
Publication Year1902
Total Pages723
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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