________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११२
रणापेंगळ
७२ (१) पथ्या गीति. पूर्वाई तथा उतरार्द्ध पथ्या आर्याना पूर्वार्द्ध प्रमाणे. पथ्या पूर्व दले ज्यम, त्रीश कला रवि अढार यति आवे; पथ्या गीति विषे तो, तेवां बे दल विवेकी कवि लावे. ९०
७३ (२) आदिविपुला गीति. पूर्वार्द्धनी यति आदि विपुला आर्याना पूर्वार्द्ध प्रमाणे. आदि दले यति विपुलानी, ने गीतितणा नियम बेमां; आदिविपुला गीति, रचवा काने प्रकार ए जेमां. ९१
७४ (३) अन्तवियुला गीति. उत्तरार्द्धनी यति अन्त विपुला प्रमाणे. अन्तविपुला गीति, रचतां गीतितणा नियम द्विदले; अन्त दले यति वियुलाकेरी, जेमां खरे खरीन पळे. ९२
७५ (४) उभय विपुला गीति. प्रवाई थप अत्तद्विनी यीत विपुलत्यार्पाना पूर्वार्द्ध प्रमाणे, उभयविपुला गीतिमाहे, द्विदले यति विपुलानी छे; नियम रचायन गीतिकेरा, जाणे सदाय ज्ञानी छे. ९३
७६ (५) मुखचपला पथ्या गीति. प्रथम दलमा मुख चपलाना नियम एटले वीजा तथा चौथा गगनै स्थाने जाग आवे अने पथ्या गीते प्रमाणे वारे अने अढारे यति आवे. गुखदलनी मांह नियमो, बधाय चपलातणा खराज पळे; मुख वाला पथ्या गोति, रचतां पथ्यातणी विरति द्विदले. ९४
७७ (६) मुखचंपला आदिविपुला गीति. प्रथम दलमा मुख वालाना नियम तथा आदिविपुलानी यति आबे, मुख दल विषेन चपलातणा, नियम यति धराय विपुलानी; प गीति मुखचपला, आदि विपुला गणायछे ज्ञानी९५
For Private And Personal Use Only