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रणपिंगळ:
१२० मात्रानी ८,६७,००,०७३,९,८,९,०,७,८,६,८,६५,८०,५१,९२ १
वृत्ति थायछे १६४. चतुष्पदी (वडी) १०,८,१२ यति तेमां अन्ते १ गुरु
एवां चार चरण-१२० मात्रानुं एक पद. न्हामी चोपदीना चार चरण प्रमाणे २८ ताल प्रति चरणमां. कर चोकलिया गण, सात वळी ते, पर गुरु एकज धरजे, ए उपर एवी, त्रण झड करीने, एक चरण ऊचरजे; चोपदी न्हानीना, चार चरण सम, प्रतिपद ताल रखाशे, कुल अठ्ठाविश तो, एवा तालो, पद पदमांह रचाशे; दशपर वळी आठे, रविने माथे, ए क्रम साथे यति छे, ते सकल मळीने, बारज आवे, प्रति पद कविनी पति छे; जो चौपदी न्हानी, चार करे तो, एक चरण बनी जाशे, त्रिश कलना टुकडा, चार गयेथी, सोने बोश कल थारा; जे आवी लांबी, जाति सारी, चतुष्पदी के 'वाशे, खुब खांत धरीने, एमां कवि को, प्रभुना गुण जो गाशे; मति विमलज थाशे, ज्ञान प्रकाशे, हरि एथी हरखाशे, मन चोख्खं राखी, नीति दाखी, प्रभुजनमा परखाशे; तुन भवनो भावट, भगवत भजतां, भट लइ भागी जाशे, छे सत्य प्रभु आ, जगमा एकन, एम तने समजाशे; तो पलीथी आडां, अवळां चलखां, को काळे नहि खाशे, को पाशे बांध्या, नहि बंधाता, लीधो नहि लेवाशे. १७७.
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