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की पुनरावृत्ति न करके जाव पद्धति द्वारा उनका उपयोग किया जाता रहा है। किन्तु कुछ वर्णन विशुद्ध रूप से साहित्यिक हैं। संस्कृत के गद्य साहित्य की सौंदर्य सुषमा उनमें देखी जा सकती है। प्राचीन भारतीय गद्य साहित्य के उद्भव एवं विकास के अध्ययन के लिए इन कथाओं के गद्यांश मौलिक आधार माने जा सकते हैं। इन कथाओं में उपमाओं का बहुत प्रयोग हुआ है। ऋषभदेव के मुनिरूप का वर्णन बहुत ही काव्यात्मक है। उसमें 39 उपमाएँ दी गयी हैं। यथा-शुद्ध सोने की तरह रूप वाले, पृथ्वी की तरह सब स्पर्शो का सहने वाले, हाथी की तरह वीर, आकाश की तरह निरालम्ब, हवा की तरह निर्द्वन्द आदि। इन कथाओं के गद्य में जितना काव्य तत्व है, उतना ही पद्य-भाग भी काव्यात्मक है। इसी तरह की उपमाएँ आदि यदि सभी कथाओं से एकत्र कर उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो भारतीय काव्य-शास्त्र के इतिहास के लिए कई नये उपमान एवं बिम्ब प्राप्त हो सकते हैं।
30. आगम कथाओं में कथानक-रूढ़ियाँ एवं मोटिफ्स __कथाओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उनके मोटिफ्स एवं कथानक रूढ़ियों का अध्ययन करना बहुत आवश्यक है। इससे कथा के उत्स एवं विकास को खोजा जा सकता है। पालि-प्राकृत कथाओं में कई समान कथानक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है। यह एक स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है। यद्यपि विदेशी विद्वानों ने इस क्षेत्र में पर्याप्त कार्य किया है। किन्तु भारतीय कथाओं की पृष्ठभूमि में अभी भी काम किया जाना शेष है। आगम ग्रन्थों में यद्यपि कई कथाएँ प्रयुक्त हुई हैं। उनके व्यक्तिवाचक नामों की संख्या हजार भी हो सकती है। किन्तु उनमें जो मोटिफ्स प्रयुक्त हुए हैं वे एक सौ के लगभग होंगें। उन्हीं की पुनरावृत्ति कई कथाओं में होती रहती है। यदि आगमिक कथाओं का एक प्रामाणिक मोटिफ्सइडेक्स तैयार किया जाये तो इन कथाओं की मूल भावना का समझने में तो सहयोग मिलेगा ही, उनके विकास क्रम को भी समझा जा सकेगा।
22 0प्राकृत रत्नाकर