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प्राकृत भाषा एवं साहित्य
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चउप्पन-महापुरिसचरियं-इस ग्रन्थ की रचना लगभग ९वीं शताब्दी (ई० ८६८) में की गयी थी। शीलंकाचार्य ने इस ग्रन्थ में २४ तीर्थंकरों, १२ चक्रवर्तियों, ९ वासुदेवों एवं ९ बलदेवों इन कुल ५४ महापुरुषों के जीवन-चरितों को प्रस्तुत किया है। अतः यह ग्रन्थ विशालकाय है । ऋषभदेव, पार्श्वनाथ, महावीर, राम, कृष्ण, भरत सभी प्रमुख व्यक्तियों का जीवन इसमें आ गया है। अतः कुछ वर्णन तो केवल परम्परा का निर्वाह करते हैं। किन्तु कुछ चरितों का विश्लेषण सूक्ष्मता से हुआ है। प्रासंगिक कथाएँ इस ग्रन्थ को मनोरंजक बनाती हैं।
जंबुचरियं-गुणपाल मुनि ने लगभग ९वीं शताब्दी में इस ग्रन्थ की रचना की है । जम्बुस्वामी के वर्तमान जन्म की कथा जितनी मनोरंजक है, उतनी ही उनके पूर्वजन्मों की कथाएँ हैं। इस कारण यह ग्रन्थ पर्याप्त सरस है । धार्मिक वातावरण व्याप्त होने पर भी प्राकृतिक वर्णनों से ग्रन्थकार का कवित्व प्रकट होता है। इस ग्रन्थ का प्राकृत गद्य समासयुक्त और प्रौढ़ है । वासगृह का वर्णन करते हुए कवि कहता है
तत्थ वि सुरहिपइन्नकुसुमदामविलंबियपवराहिराम, कप्पूररेणुकु दुमकेमरलवंगकथरियसु रहिगंधठरएरिय पचिट्ठो कुमारो वासहर ति।
रयणचूडरायचरियं-यह ग्रन्थ लगभग १२वीं शताब्दी में चन्द्रावती नगरी (आब) में लिखा गया था। इसके रचयिता नेमिचन्द्रसूरि प्राकृत के प्रसिद्ध कथाकार हैं । इस ग्रन्थ में रत्नचड एवं तिलकसुन्दरी के धार्मिक जीवन का वर्णन है। किन्तु उनके पूर्वजन्मों का वर्णन करते समय ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ को मनोरंजक और काव्यात्मक बना दिया है । इस ग्रन्थ की कथाएँ लौकिक एवं उपदेशात्मक हैं। इसका प्राकृत गद्य प्रांजल एवं समासयुक्त है।
सिरिपासनाहचरियं-इस ग्रन्थ की रचना देवभद्रसूरि ( गुणचन्द्र ) ने ई० ११११ में की थी। इसमें पार्श्वनाथ के जीवन का विस्तार से वर्णन है । पूर्वभवों के प्रसंग में मनुष्य जीवन की विभिन्न वृत्तियों का इसमें अच्छा चित्रण हुआ है । अवान्तर कथाएँ इस ग्रन्थ के कथानक को रोचक बनाती हैं। ___ महावीरचरियं--ई० सन् १०८२ में गुणचन्द्र ने इस ग्रन्थ की रचना छत्रावली में की थी। इस गन्थ में भगवान् महावीर के जीवन को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रन्थ गद्य और पद्य में लिखा गया है। काव्यात्मक वर्णनों के लिए यह ग्रन्थ प्रसिद्ध है।
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