________________
१३८
प्राकृत भारती
१९. इस समय तो मेरे ऊपर भाग्य ने कृपा दृष्टि की है, इसलिए (मैं)
बड़ा ही भाग्यशाली हूँ, जो आज उसी भोज राजा के द्वारा आपके
कार्य-विशेष के महत्त्व से भेजा गया हूँ। २०. हे माधव ! सुनें! तुम्हारा वह मामा भय से सदा व्याकुल है, जो
यह प्रयत्न कर रहा है। तुम लोगों को भी इस समय ठगने की इच्छा
कर रहा है। क्या वह जगत के लिए कुछ भी संपदा दे सकता है ? २१. तम से युक्त वह इस समय फिर भी तमको स्वयं मारने के लिए
उद्यत (प्रयत्नशील) है, जिसके वध के लिए लम्बी भुजाओं वाले वे
प्रलम्ब और केशी भी समर्थ नहीं हो सके । २२. हे त्रिलोकदर्शी। मंच पर बैठा हुआ वह दुष्ट (कंस) कुम्भी राजा
और मल्लों के साथ धनुष उत्सव के बहाने पृथ्वीनाथ, आपको मारने
के लिए बीच का साहसिक कार्य कर रहा है। २३. उस दुष्ट राजा (कंस) ने एकांत में बुलाकर मुझे जो कुछ भी कहा
उसे भी सुनिए-हे अक्रूर ! शीघ्र गोकुल जाओ और बालक राम
केशव को इस प्रकार कहें२४. भोजराजा की भुजाओं से रक्षित मथुरा के राज-भवन में धनुष यज्ञ
है। यदि आप लोग उसे देखने के लिए कुछ भी उत्सुक (हों) तो
शीघ्र आकर उत्सव देखें। २५. वह नंदगोप भी अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों सहित शीघ्र मेरे भवन
को प्राप्त होवें । तुम सबको देखने के लिए उसके द्वारा (कंस के द्वारा
ही) सब कुछ कहा गया। २६. इस कार्य (धनुष-यज्ञ) का ऐसा शरीर (ऐसा उद्देश्य) है। जहाँ पर
ही ठगने का कार्य साँस ले रहा है । इसलिए आप नंदपुत्र, जाओ या
न जाओ। क्योंकि विधि और निषेध दूत का कार्य नहीं है। २७. उस पर रोहिणीसुत (बलराम) कहते हैं-हे भाई (कृष्ण) ! मेरे मन
के भाव दो प्रकार के हैं। धनुष-यज्ञ का कौतुहल प्रवृत्त हो रहा है, किन्तु कपट किए जाने के कारण निवृत हो रहा है। २८. वनमाली (कृष्ण) यह वचन कहते हैं-'प्रलम्ब को नष्ट करने वाले
बलराम बहुत कहने से क्या लाभ ? क्योंकि व्यर्थ के कार्य के लिए.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org