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प्राकृत भारती लिए उससे कहता है कि मुझे कुछ भी दीजिए। उसने कहा-गायें ले लो । चाणक्य कहता है-डरता हूँ कि कोई मार डालेगा। चन्द्रगुप्त कहता है-पृथ्वी वीरों के ही उपभोग के लिए है । तब उसका परिचय पाने का उत्सुक चाणक्य पछता है कि यह किसका पुत्र है ? इस प्रकार कहने पर बच्चों ने कहा-यह परिव्राजक का पुत्र है। इस प्रकार सुनकर 'मैं ही वह परिव्राजक हूँ जिसने इसकी माता का दोहद पूर्ण किया', अतः इसे राजा करूँगा । वह उसको साथ लेकर निकल गया।
उसने लोगों को अपनी सेना में भर्ती किया। [५] पाटलीपुत्र पर चढ़ाई कर दी। नन्द के द्वारा भगाये जाने पर परि
व्राजक चाणक्य भागा। अश्वारोहियों द्वारा पीछा किये जाने पर चन्द्रगुप्त को कमलों से आच्छादित सरोवर में छिपा दिया और चाणक्य धोबी बनकर बैठ गया। नन्द द्वारा भेजे गये किशोर घुड़सवार सैनिक के द्वारा पूछा गया-चन्द्रगुप्त कहाँ है ? कहा-इस कमल सरोवर में प्रविष्ट होकर बैठा है। जब उस सवार ने चन्द्र गुप्त को देखा तब उसने घोड़ा चाणक्य के सुपुर्द कर दिया और तलवार छोड़ दी। जैसे ही पानी में उतरने के लिए अपना कवच खोला, चाणक्य ने उसके तलवार से दो टुकड़े कर दिये । बाद में चन्द्रगुप्त बुलाने पर बाहर आ गया और दोनों पूनः वहाँ से भाग गये। उसने चन्द्रगुप्त से पूछा-जब मैंने तालाब में तुम्हें बताया तब तुमने मन में क्या सोचा ? उसने कहामैंने सोचा कदाचित् यही ठीक है, क्योंकि स्वयं आर्य जानते हैं कि क्या उचित है। तब उसने जान लिया-यह योग्य है, यह विपरीत मतिवाला नहीं होगा । चन्द्रगुप्त को भूख लगने लगी। चाणक्य उसको एक जगह बैठाकर भोजन को प्राप्त करने गया। वह डर रहा था कि यहाँ पहचान नहीं लिया जाए अतः एक ब्राह्मण को बाहर ही रोक करके दही व भात ग्रहण कर आ गया, बच्चे को जीमाया। अन्य एक बार घूमते हुए एक गाँव में पहुँचे । वहाँ एक घर में बुढ़िया ने पुत्र को पात्र में गरम खिचड़ी रखी । उसने हाथ बीच में डाल दिया। वह जल जाने पर रोने लगा। उस बुढ़िया के द्वारा कहा गया-चाणक्य की तरह मूर्ख है । भेदन करना भी नहीं जानता है। उसके द्वारा पूछने पर कहामहल पर पहले ग्रहण करने के कारण वह पराजित हुआ। तब वह हिमवंत कूट गया । वहाँ के पर्वत राजा के साथ उसने मैत्री स्थापित की
और कहा-नन्द के राज्य को समान-समान भाग से विभाजित कर लेंगे । उसके द्वारा मानलिया गया। एक-एक का विनाश करना प्रारम्भ
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