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३.
शीलवती - चरित
गाथा १ - इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इन्द्रपुरी के समान बुद्धिजीवियों के लिए आनन्द दायक नगरों में श्रेष्ठ नन्दनपुर नाम का
नगर था ।
गाथा २ - वहाँ पर दुश्मनों की सेना का नाश करने वाला, हरि के समान अरिमर्दन नाम का राजा था । उसी नगर में गुणरूपी रत्नों से सम्पन्न रत्नाकर नाम का सेठ रहता था ।
गाथा ३ – उस सेठ 'श्री' नाम की पत्नी थी । दुःखी था ।
की रूप गुणों में प्रत्यक्ष लक्ष्मी के समान उसके कोई पुत्र नहीं था अतः वह बहुत
[१] एक बार उसकी पत्नी ने कहा - 'हे आर्य पुत्र ! इसी नगर के उद्यान अजित जिनेन्द्र के मन्दिर के अग्रभाग में अजित बाला देवी के द्वारा पुत्रहिनों को पुत्र, धनहिनों को धन, राज्यहिनों को राज्य, विद्याहिनों को विद्या, सौख्यहिनों को सुख, नेत्रहिनों को नेत्र प्रदान करती है और रोगियों के रोग का क्षय करती है ।" सेठ के द्वारा उसकी आराधना की गयी । क्रम से पुत्र उत्पन्न हुआ । उसका 'अजित सेन' नाम रखा गया । सेठ जिनधर्म में उद्यत हो गया । अनेक मनोरथों
साथ अजितसे बड़ा हुआ । विभिन्न कलाओं की शिक्षा प्राप्त को । लावण्य रूपी लक्ष्मी से यौवन को प्राप्त हुआ। सभी लोगों से उसके रूपादि गुणों की प्रशंसा को सुनकर सेठ को चिन्ता हुई— “यदि मेरा पुत्र अपने गुणों के अनुरूप पत्नी नहीं पाएगा, तो इसके गुण व्यर्थ हो जायेंगे ।"
यथा
गाथा ४ -- अज्ञानी स्वामी, अविनीत नौकर, परवशता और अननुरूप भार्या, ये चार मनुष्य के मन के काँटे हैं ।
[२] इसी बीच एक वणिक पुत्र आया । सेठ को प्रणाम करके उसके समीप बैठा । सेठ ने उसका समाचार पूछा । उस वणिक 1
पुत्र ने सब कुछ
* अनुवाद - डॉ० सुभाष कोठारी - आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर ।
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