Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 260
________________ २५१ " उसका बहुत सत्कार किया जाना चाहिए ।" स्वामी ने । पूछा"यह कैसे ?” उसने कहा - "प्रिय पत्नी के अतिरिक्त कौन राजा पर पाँव से प्रहार कर सकता है । इस पर विचार करने का भी अधिकार दूसरों को नहीं, तो प्रहार की तो बात ही क्या ?” तब वह राजसभा में गया और पूर्वोक्त वृत्तान्त कहा। राजा संतुष्ट हुआ । उन्होंने उसको सभी मंत्रियों में शिरोमणि कर दिया । आठ कथानक [१४] एक दिन विरोधी बना हुआ सिंहरथ राजा राज्य के समीप में आया । उसके प्रतिकार हेतु मदोन्मत्त हाथी के मद जल से पृथ्वी को गीली करते हुए, चपल घोड़ों के खूरों से क्षत पृथ्वी की रज रूपी मेघ से आकाश को छा करके, चलते हुए रथों की श्वेत पताका रूपी बगुलों की पंक्ति के समान मनोहर और वाद्ययंत्रों के गंभीर नाद रूप गर्जन ब्रह्माण्ड को गूंजाता हुआ नवीन वर्षा ऋतु की तरह राजा अरिमर्दन चला। अजितसेन, शीलमती के द्वारा चिंतातुर देखा गया । चिन्ता का कारण पूछा। उसने कहा -- "मुझे राजा के साथ जाना पड़ेगा। तुमको ले जाने के लिए कहने पर मेरा घर सूना रहेगा । इसलिए यद्यपि तुम अक्षत शीला हो, फिर भी एकाकी घर में छोड़कर जाते हुए मेरा मन नहीं मानता है । यही मेरी चिन्ता है ।" उसने कहा -- गाथा १० -- अग्नि शीतल हो सकती है, सूर्य पश्चिम में उदय हो सकता है, मेरू-शिखर कंपित हो सकता है, पृथ्वी उछल सकती है, गाथा ११ -- वायु स्थिर हो सकती है, समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लंघन कर सकता है, तथापि मेरे शील को भंग करने में इन्द्र भी समर्थ नहीं है । गाथा १२ -- फिर भी तुम मन के संतोष के लिए यह कुसुममाला ग्रहण करो । मेरे शील के प्रभाव से यह सदा अम्लान रहेगी । 1 गाथा १३ -- यदि यह म्लान हो जाय तो शील- खण्डन समझना । यह कहकर अपने हाथों से पति के गले में फूलों की माला डाल दी । गाथा १४ -- तदनन्तर अजितसेन मंत्री शीलवती को घर में छोड़कर निश्चिन्त मन से अरिमर्दन राजा के साथ चला । गाथा १५--निरन्तर चलते हुए उस प्रदेश में राजा पहुँचा, जहाँ पर फूल और किसी भी जाति के शतपत्रादि नहीं मिलते थे । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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