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आठ कथानक
२५७.
तप करने लगी और तिथियों में पुस्तकों की पूजा आदि से उस दिन को व्यतीत करती थी।
गाथा ४३-समय से दोनों ही मर करके सौधर्म देवलोक में उत्तम देव पद को प्राप्त हुए। दुर्गत् का जीव वहाँ से चल करके तुम अजितसेन के रूप में उत्पन्न हुए हो।
__ गाथा ४४-और यह दुर्गिला तुम्हारी शीलवती पत्नी के रूप में उत्पन्न हुई। ज्ञान की आराधना के कारण विशिष् ठ बुद्धि वाली
गाथा ४५-तब उत्पन्न हुए जाति-स्मरण के द्वारा उन्होंने कहा-हे मुनिवर! तुमने जो कहा है वह सत्य है । तब गुरु ने इस प्रकार कहा
गाथा ४६--'यदि देश-रूप से भी शील का पालन करने से यह फल प्राप्त हुआ है, तो उस सर्वव्रत का परिपालन करने का प्रयत्न करो।
गाथा ४७-और सर्व-संग परिहार रूप दीक्षा ग्रहण करो।' उन्होंने कहा-कृपा करके हमें दीक्षा प्रदान करो।
गाथा ४८-तब गुरु के द्वारा दोनों को ही दीक्षित किया। मन . के संवेग को छोड़कर यावज्जीवन निष्कलंक सर्वरूप से शील को पालन किया।
गाथा ४९-वहाँ से मर करके ब्रह्म देवलोक को प्राप्त हुए। वहाँ दिव्य सुख को भोगकर अनुक्रम से जन्मान्तर में जाकर निर्वाण-पदको प्राप्त किया।
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