Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 261
________________ २५२ प्राकृत भारती गाथा १६--अजितसेन के गले में अम्लान फूलमाला देखकर राजा ने पूछा--तुम्हारे पास यह अम्लान पुष्पमाला कहाँ से आयी ? गाथा १७---यह बहुत बड़ा आश्चर्य है। मैंने, मेरे पुरुषों को भेजकर सब तरफ गवेषणा करवायी, फिर भी कहीं पर भी फूलों को प्राप्त नहीं किया। गाथा १८-मंत्री अजितसेन ने कहा-चलते समय मेरी प्रिया के द्वारा यह माला मेरे गले में डाली गयी है। उसके शील के प्रभाव से यह म्लान नहीं होगी। गाथा १९-इसको सुनकर राजा अत्यन्त विस्मित हुआ। अजितसेन चला गया। तब उसने अपने दूसरे मंत्रियों से इस पर विचार-विमर्श किया। __गाथा २०-जो अजितसेन सचिव के द्वारा कहा गया है, वह क्या संभव है ? कामांकुर ने कहा-महिलाओं के शील कहाँ ? गाथा २१–ललितांग ने कहा-कामांकुर ने जो कहा है, वह सत्य है। रतिकेलि ने कहा-देव को इसमें क्या संदेह है ? गाथा २२-अशोक के द्वारा कहा गया हे देव ! मुझे जाने की आज्ञा दो । जिससे शीलवती के शील को नष्ट करके देव का संदेह दूर कर दूं। गाथा २३-तब राजा ने उसे बहुत-सा धन देकर रवाना किया । वह नंदनपुर पहुँच कर शीलवती के मकान के पास रहने लगा। गाथा २४-वह गवाक्ष पर जाकर किन्नर के गीत के समान पंचम राग से गीत गाने लगा। गाथा २५--उज्ज्वल वेश धारण करके (वह शीलवती को) सानुराग दृष्टि से देखता है । निरन्तर दान और भोग से अपने को दुर्लभ प्रकट करने लगा। गाथा २६--इस प्रकार बहुत से प्रकार करने लगा, तब उस शीलवती ने सोचा-यह मेरे शील को स्खलित करने के लिए आया है। गाथा २७-मणिधर के फल से रत्न लेना, अग्नि की ज्वालाओं को शांत करना और सिंह की केसर ग्रहण करना दुष्कर है, यह मूढ़ यह नहीं जानता है। [१५] तब 'कौतुक देखूगो' इस प्रकार विचार कर प्रकट हो उसको देखने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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