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प्राकृत भारती
गाथा १६--अजितसेन के गले में अम्लान फूलमाला देखकर राजा ने पूछा--तुम्हारे पास यह अम्लान पुष्पमाला कहाँ से आयी ?
गाथा १७---यह बहुत बड़ा आश्चर्य है। मैंने, मेरे पुरुषों को भेजकर सब तरफ गवेषणा करवायी, फिर भी कहीं पर भी फूलों को प्राप्त नहीं किया।
गाथा १८-मंत्री अजितसेन ने कहा-चलते समय मेरी प्रिया के द्वारा यह माला मेरे गले में डाली गयी है। उसके शील के प्रभाव से यह म्लान नहीं होगी।
गाथा १९-इसको सुनकर राजा अत्यन्त विस्मित हुआ। अजितसेन चला गया। तब उसने अपने दूसरे मंत्रियों से इस पर विचार-विमर्श किया।
__गाथा २०-जो अजितसेन सचिव के द्वारा कहा गया है, वह क्या संभव है ? कामांकुर ने कहा-महिलाओं के शील कहाँ ?
गाथा २१–ललितांग ने कहा-कामांकुर ने जो कहा है, वह सत्य है। रतिकेलि ने कहा-देव को इसमें क्या संदेह है ?
गाथा २२-अशोक के द्वारा कहा गया हे देव ! मुझे जाने की आज्ञा दो । जिससे शीलवती के शील को नष्ट करके देव का संदेह दूर कर दूं।
गाथा २३-तब राजा ने उसे बहुत-सा धन देकर रवाना किया । वह नंदनपुर पहुँच कर शीलवती के मकान के पास रहने लगा।
गाथा २४-वह गवाक्ष पर जाकर किन्नर के गीत के समान पंचम राग से गीत गाने लगा।
गाथा २५--उज्ज्वल वेश धारण करके (वह शीलवती को) सानुराग दृष्टि से देखता है । निरन्तर दान और भोग से अपने को दुर्लभ प्रकट करने लगा।
गाथा २६--इस प्रकार बहुत से प्रकार करने लगा, तब उस शीलवती ने सोचा-यह मेरे शील को स्खलित करने के लिए आया है।
गाथा २७-मणिधर के फल से रत्न लेना, अग्नि की ज्वालाओं को शांत करना और सिंह की केसर ग्रहण करना दुष्कर है, यह मूढ़
यह नहीं जानता है। [१५] तब 'कौतुक देखूगो' इस प्रकार विचार कर प्रकट हो उसको देखने
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