________________
२५०
प्राकृत भारतो
हूँ (इस अवस्था को प्राप्त हुई हैं)। और अब यह कौवा बोलता है कि-"इस करीर के पेड़ के नीचे दस लाख सुवर्ण प्रमाण धन है,
उसको ग्रहण कर मुझे दही भात देओ।" । [११] इस बात को सुनकर के सहसा सेठ उठा और कहने लगा-"क्या
यह सत्य है ?" बह ने कहा-"पिता के चरणों के समक्ष झूठ क्यों बोलूंगी ? अथवा हाथ कङ्गन को आरसी (दर्पण) की क्या आवश्यकता है। उसको देख लिया जाय।" तब वहाँ सेठ ने रात्रि में धन को ग्रहण किया। "अहो ! यह तो साक्षात् लक्ष्मी की तरह आयी है," इस प्रकार विचार कर बहु को रथ पर चढ़ाकर वापस पीछे लौट पड़ा । पुनः बड़ के पेड़ के पास पहुँचे। बह से पूछा-"तुम इसकी छाया में क्यों नहीं बैठी ?" बहू ने कहा-“वृक्ष के मूल में साँप के डसने का भय रहता है, और बहुत समय तक बैठने पर चोरों का
भय रहता है । दूर रहने पर यह सब नहीं होता है।" [१२] पुनः प्रश्न करते हुए सेठ ने कहा-“नगर कैसे उजाड़ है ?" उसने
कहा-जहाँ लोगों में अतिथि सत्कार की प्रवृत्ति नहीं हैं, वह स्थान वसति रहित ही है । खेत को देखकर सेठ ने पूछा- “यह खेत कैसे खाया जायगा ?' उसने कहा-"व्यापारी से धन को प्राप्त करके यह इसका भक्षण करेगा, इसलिए खेत स्वामी को खाया हुआ कहा।" नदी को देखकर सेठ ने कहा- "तुमने नदी में जूते क्यों नहीं उतारे ?" उसने कहा-"जल में कीट कंकड़ आदि दिखाई नहीं पड़ते इसलिए।" सेठ घर पहुँचा । बहू के द्वारा आभूषणों को दिखाया गया। संतुष्ट हुए सेठ ने पत्नी व पुत्र को सब बात कहकर बहू को घर की स्वामिनी बना दिया। ___गाथा ९-इसके बाद जीवन की विनाशता के कारण सेठ मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसकी सहचरी श्री भी उसकी छाया के समान विरह
में मृत्यु को प्राप्त हो गयी। [१३] अजितसेन भी जिन-धर्म में संलग्न होकर समय व्यतीत करने
लगा। एक दिन अरिमर्दन राजा पाँच सौ नये मंत्रियों में प्रधानमंत्री खोजने के लिए प्रत्येक नागरीक को पूछता है--"हे लोगों ! जो मुझे पाँव से मारे, उसका क्या किया जाय ?" अजितसेन से पूछा । उसने कहा-"विचार करके कहूँगा।" घर आ करके उसका उत्तर शीलवती से पूछा । चार प्रकार की बुद्धि से युक्त वह कहती है--
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org