Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 263
________________ :२५४ प्राकृत भारती गाथा ३२--जो मुढ़ मनुष्य अपनी और दूसरे की शक्ति को नहीं जानते हैं ।हे श्रेष्ठ शीलवती! वे मूर्ख जो प्राप्त करते हैं, वह हमारे द्वारा प्राप्त कर लीया गया है। [१८] इस प्रकार तुम्हारा माहात्म्य देख लिया है। हम तुम्हारे अधीन है। प्रसन्नता प्रकट (दया) करो। हमको इस नरक के समान विषम गड्ढे से एक बार बाहर निकालो। उसने कहा-"ऐसा हो सकता है यदि मेरे वचन के अनुसार करो।" उन्होंने कहा- “जो भी करवाना हो, करने को तैयार है।" उसने कहा- "यदि ऐसा हैं, तो इसी प्रकार होगा" जो मैं कहूँगी, उसे तुम्हारे द्वारा भी-'इसी प्रकार हो' कहना पड़ेगा। वे मन से आश्रित हो गये। “मंत्री ने राजा को निमंत्रित किया । राजा आ गया, आदर सत्कार किया गया। उसके द्वारा गुप्त रूप से भोजन सामग्री तैयार की। राजा ने सोचा-"मझे निमंत्रित किया गया, किन्तु अभी तक भोजन की तैयारी तो दिखाई नहीं देती. तो यह क्या है ?" [१९] उस शीलवती ने उस गड्ढे को फूलों आदि के द्वारा भर करके कहा-“हे यक्षों! रसवती आदि सब तैयार है।" उन्होंने कहा"इसी प्रकार है।" तब रसवती सामग्रियाँ आ गयी। राजा ने भोजन किया । तब पूर्व की तरह प्रकट किये गये पान, पुष्प, विलेपन, वस्त्र, आभूषणों और चार लाख द्रव्य इत्यादिक सब ही 'हो गये' इस प्रकार अपने गड्ढे से कहा, और गड्ढे ने कहा-'हो गये।' सब राजा को भेट-समर्पित कर दिये । राजा ने सोचा-'अहो ! अपूर्व सिद्धि है जो गड्ढे के पास उपस्थित होकर वचन के द्वारा कहने मात्र समय से सब तैयार हो जाता है ।" आश्चर्य युक्त मन से राजा ने शीलवती से पूछा-“हे भद्रे ! यह क्या आश्चर्य है ?" उसने कहा-“हे देव ! मेरे द्वारा सिद्ध चार यक्ष यहाँ हैं । वे सब सम्पादित कर देते हैं।" राजा ने कहा-"वे यक्ष मुझे समर्पित कर दो।" उसने कहा-"देव ग्रहण कर ले।" संतुष्ट राजा अपने आवास पर गया। [२०] उसने भी उन चारों को चन्दन से लिप्त कर, फूलों के पूज कर, चार कपड़ों में डालकर, अपनी गाड़ी में चढ़ा करके ढोल बजाते हुए संध्या के समय राजभवन ले जाने के लिए दिये । “सवेरे में यक्ष भोजनादि दे देंगे" यह सोचकर राजा ने भोजन बनाने वालों को निकाल दिया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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