Book Title: Prakrit Bharti
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 258
________________ आठ कथानक २४९ एक गाँव में पहुँचे । सेठ को बहू ने कहा-“यहाँ मेरा मामा रहता है, उसको जाकर देखती हूँ। तब तक आप प्रतीक्षा करना", इस प्रकार कहकर वह गयी। मामा के द्वारा आश्चर्य युक्त होकर उसको कहा-"पुत्री ! कहाँ जा रही हो ?" उसने कहा-"श्वसुर के साथ पिता के घर जा रही हूँ।" उसने कहा-"तुम्हारा श्वसुर कहाँ है ?" उसने कहा-"बाहर बैठे हैं।" [८] मामा के द्वारा जा करके सागर सेठ को बुलाया गया। कषाय से युक्त नहीं चाहते हुए भी आग्रहपूर्वक घर ले जाया गया। भोजन करके बाहर आ गये। मध्याह्न के समय रथ के नीचे विश्राम करने लगे। शीलवती भी रथ की छाया में बैठ गयी। इसी बीच करीर के वृक्ष के झुरमुट से कौव्वा बार-बार बोलने लगा। क्रोध से बह ने कहा-"अरे । कौव्वे ! तुम कर-कर करते हुए थकते नहीं हो।" गाथा ७–एक दुाय किया, जिसके कारण घर से निकलना पड़ा । दूसका दुाय यदि करूँगी तो पिता से भी नहीं मिल सकूँगी। [९] इसको सुनकर सेठ ने उससे पूछा- “हे पुत्रि! यह क्या बोल रही हो।" बह ने कहा-"कुछ भी नहीं।" सेठ ने कहा-"कैसे कुछ नहीं", कौव्वे की ओर देखकर “एक दुाय" इस प्रकार जो पढ़ा गया, वह साभिप्राय है । बहू ने कहा- "इस प्रकार है, तो सुनिये।" क्योंकि गाथा ८-सुगन्ध गुण के कारण चन्दन काटा और घर्षण आदि को प्राप्त होता है, और रंग रूप गुण के कारण मजिठा कट कर घर्षण को प्राप्त होता है। [१०] इस प्रकार मेरे गुण भी मेरे शत्रु हो गये हैं। मैं “सकल कला शिरो मणी भूत पक्षी की आवाज को सुन सकती हूँ।" तब बीते हुए दिन की रात्रि में शृगाली के द्वारा विशेष रूप से आह्वान किया गया"नदी के पूर में जाता हआ मुर्दा निकालकर कोई आभूषणों को ग्रहण करो और मेरे भोजन को वहाँ डाल दो"। इसको सुनकर मैं घड़े को लेकर गयी । उसको वक्षस्थल पर बाँधकर नदी में उतरी। मूर्दे को निकाला । आभूषणों को ग्रहण किये । शृगाली के लिए शव फेंका । मैं अपने घर आ गयी। आभूषणों को घड़े में डालकर भूमि में दबा दिये । यह एक दुाय का प्रभाव ही था, जो मैं इस भूमि पर पहुंची Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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